Book Title: Madhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 279
________________ 254 किया है-'चलटी चाल मिले पार ब्रह्म कौं, सौ सतगुरु हमारा।' इसी माध्यम से उन्होंने सहज साधना की है और उसे कबीर ने तलवार की धार पर चलने के समान कहा है। इसमें षट्पकों मुद्रामों प्रादि की आवश्यकता नहीं होती । वह सहज भाव के साथ की जाती है । राजयोग, उन्मनि अथवा सहजावस्था समानार्थक है । सहजावस्था वह स्थिति है जहां साधक को ब्रह्मत्मैक्य प्राप्त हो जाता है । कबीर ने यमनियमों की भी चर्चा की है। उनमें बाह्याडम्बरों का तीव्र विरोध किया गया है और मन को माया से विमुक्त रखने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने सहज समाधि को ही सर्वोपरि स्वीकार किया है. सन्तो सहज समाधि भली। सांई ते मिलन भयो जा दिन त, सुरतन मंत चली। मांख न मूदू कान न संधू, काया कष्ट न धारू । खुले नैन मैं हंस-हंस देखू, सुन्दर रूप निहारूं ।। कहूं सु नाम सुनु सौ सुमरन, जो कुछ करू सौ पूजा। गिरह उद्यान एक सम देखू, और मिटाउ, दूजा ॥ जहं-जहं जाऊं सोइ परिकरमा, जो कुछ करूसो सेवा । जब सोऊ तब करू दंडवत, पूंजू और न देवा ।। शब्द निरंतर मनवा राता, मलिन वचन का त्यागी। कहै कबीर यह उनमनि रहनी, सो परगट करिगाई। सुख दुःख के इक परं परम सुख, तेहि में रहा समाई॥ सहजावस्था ऐसी अवस्था है जहां न तो वर्षा है न सागर, न प्रलय, न धूप, न छाया, न उत्पत्ति मोर न जीवन और मृत्यु है, वहां न तो दुःख का अनुभव होता है 1. कबीर ग्रन्थावली, पृ 145. सहज-सहज सब कोऊ कहे सहज न चीन्हे कोय । जो सहजै साहब मिले सहज कहावं सोय । सहर्ज-सहज सब गया सुत चित काम निकाम । एक मेक हवं मिलि रहा दास कबीरा जान । कड़वा लागे नीम सा जामे एचातानि । सहज मिले सो दूध-सा मांगा मिले सो पानि । कह कबीर वह रफत सम जामै एचातानि । संत साहित्य, पृ. 222-3. 3. ब्रह्मगिनि में काया जारं, त्रिकुटर्टी संगम जाग। कहै कबीर सोइ जागेश्वर, सहज सूनि त्यो लागे ॥ कबीर ग्रन्थावली, पृ. 109. 4. कबीर दर्शन, पृ, 297-347. 5. प्राचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी-कबीर परिशिष्ट : कबीर बापी, प. 262.

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