Book Title: Madhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 293
________________ 268 पिउ' वाले मार्तस्वर से भी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । पिया मिलन की ग्रास लेकर माखिर वह कब तक खड़ी रहे- 'पिया मिलन की प्रास, रहीं कब लौं खरी ।' पिया के प्रेम रस में कबीर ने अपने प्रापको मुला दिया। एक म्यान में दो तलवारें भला कैसे रह सकती हैं ? उन्होंने प्रेम का प्याला खूब पिया । फलतः उनके रोम-रोम में बही प्रेम बस गया। कबीर ने गुरु-रस का भी पान किया है, छाछ भी नहीं बची। यह संसार-सागर से पार हो गया है । पके घड़े को कुम्हार के बाक पर पुनः चढ़ाने की क्या आवश्यकता ? पीया चाहे प्रेम रस राखा चाहे मान । एक स्थान में दो खड़ग देखा सुना न कान । कबिरा प्याला प्रेम का, मंतर लिया लगाय । रोम-रोम मे रमि रहा श्रौर अमल क्या खाय । कबिरा हम गुरु रस पिया बाकी रही न छाक । पाका कलस कुम्हार का बहुरि न चढसि चाक 12 सन्तों ने वात्सल्य भाव से भगवान को कभी माता रूप में माना तो कभी पिता रूप में । परन्तु माधुर्य भाव के उदाहरण सर्वोपरि हैं। उन्होंने स्वयं को प्रियतम और भगवान् को प्रियतम की कल्पना कर भक्ति के सरस प्रवाह में मनचाहा अवगाहन किया है— हरि मेरा पीउ मैं हरि की बहुरिया । दादू, सहजोबाई, 14 चरनदास प्रादि सन्तों ने भी इसी कल्पना का सहारा लिया है। उनके प्रियतम ने प्रिया के लिए एक विचित्र चूनरी संवार दी है जिसे विरला ही पा सकता है। वह माठ प्रहररूपी माठ हाथो की बनी है और पंचतत्त्व रूपी रंगों से रंगी है। सूर्यचन्द्र उसके प्रांचल में लगे हैं जिनसे सारा संसार प्रकाशित होता है । इस चूनरी की विशेषता यह है कि इसे किसी ने ताने-बाने पर नहीं बुना । यह तो उसे प्रियतम ने भेंट की है 1. चुनरिया हमरी पिया ने संवारी, कोई पहिरं पिया की प्यारी । माठ हाथ की बनी चुनरिया, पंचरंग पटिया पारी ॥ 4. मैं अबला पिउ-पिड करू निर्गुन मेरा पीव । शून्य सनेही राम बिन, देखूं भौर न जीव ॥ सन्त कबीर की साखीबैंकटेश्वर, पृ. 26. कबीर वचनावली - प्रयोध्यासिंह उपाध्याय, पृ. 104. 2. 3. हरिजननी मैं बालक तौरा — कबीर ग्रन्थावली, पृ. 123; हम बालक तुम माय हमारी पलपल मांहि करो रखवारी - सहजोबाई, सन्त सुषासार, पृ. 196. कबीर ग्रन्थावली, पृ. 125.

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