Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm Author(s): Hiralal Duggad Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir DelhiPage 11
________________ पुस्तक छपने के बाद प्राप्त समाचार भटिण्डा (पंजाब) वि० सं० १२३६ (सन ११७६) में प्रतिष्ठित ३०” ऊंची अत्यन्त बढ़िया संगमरमर की बनी हुई भगवान श्री नेमिनाथ जी की तथा दूसरी भगवान धर्मनाथ जी की २३" ऊंची श्वेत वर्ण-इस प्रकार दो प्रतिमाएं अक्टूबर १९७६ में भटिण्डा में भूगर्भ से प्राप्त हुई हैं। भगवान नेमिनाथ जी की मूर्ति भामण्डल और सिंहासन सहित है । लेख से ऐसा प्रतीत होता है कि किन्हीं राजा कोरपाल ने अपने पिता की स्मृति में बनवाई थी। सिंहासन में शेर, हाथी प्रादि बने हुए हैं, जबकि तोरण में नाट्य प्रादि मुद्रा में इन्द्राणियां चित्रित हैं । श्री धर्मनाथ जी की प्रतिमा में एक विशेष लक्षण यह है कि दाई भुजा पर ३॥ लम्बी ६" चौड़ी तथा ०।" मोटी पट्टी का निशान है । जैसेकि किसी कपड़े या चादर का निशान बनाया हो । कपड़े का ऐसा चिन्ह इससे पूर्व किसी मूर्ति पर संभवतः उपलब्ध नहीं हुआ है । प्रतिमाओं के हाथों और चरणों की रेखाएं बिल्कुल स्पष्ट हैं। कानों और होंटों पर लाल रंग अभी तक विद्यमान है । मूर्तियों का पाषाण, प्राकृति व शैली इतने श्रेष्ठ हैं कि उस काल को विकसित मूर्तिकला का आदर्श निदर्शन हैं। भटिण्डा पूर्व काल में भी जैनों का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है । जैन ग्रंथों में सतलुज नदी के किनारे पर बीदपुर नामक किसी नगर के होने का उल्लेख मिलता है, यहां पर श्रीपूज्यों की गद्दी भी थी। उत्तरभारत से मुलतान सिंध तथा राजस्थान में जाने के लिए यह मार्गद्वार था। खरतरगच्छीय श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार श्री जिनदत्त सूरि जी ने भटिण्डा की एक श्राविका के लिए "सन्देह दोहावली" ग्रंथ की रचना की थी। भटिण्डा से मण्डी डबवाली जाने वाली सड़क पर शहर के समीप ही पटियाला कालोनी के पास श्री हंसराज बागला अपने फार्म (खेत) को ट्रैक्टर से समतल करवा रहे थे, तभी ये दोनों भूतियां उपलब्ध हुई है . इस क्षेत्र को सरकार ने सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है। अधिक खुदाई होने पर और तथ्य सामने पाएंगे। (इनमें से एक मूर्ति भटिण्डा के जैन मन्दिर में आ गई है। दूसरी केलिए प्रयत्न जारी है) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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