Book Title: Madanrekha Akhyayika
Author(s): Jinbhadrasuri, Bechardas Doshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 257
________________ सुतवियोग मूझनइ हुउ जी, ए दीसइ सविकार । दाद्धा ऊपरि फोडल जी, खंतक उपरि जिम खार ॥कर० ॥५४॥ कर किणी परी सीलरतन तणउ जी, जतन करेस्युं आज । मोहनु वायु जीवडउ, न गणइ काज अकाज ॥ कर० ॥५५॥ हिवइ विलंब किधु भलउ जी, जांणी बोलइ एम । जाउ फर्या पुठि जस्यु जी, कहस्यु करस्युं तेम ॥कर०॥५६॥ ते हरख्यु मनि आपणि जी, जोरई प्रीम न होई । जइ ईम ए मुझ वसि हुवइ जी, काम सरइ ईम दोई ।। कर० ॥५७॥ रच्यउ विमान ते आरूही जी, नंदीसरवरि पहुत । च्यार अंजणगिरि दधिमूखि जी, सोलह चेई नितु ॥ कर० ॥५८॥ वलि बत्रीस रतिकर गिरइ जी, इम जिणहर बावन । सोहइ जिणवर सासता जी, वांदइ ते धनि धनि ॥ कर० ॥५९॥ सु जोयण दीरघपणि जी, पिहुलपणि पंचास ।। बहुत्तरि जोयण उचता जी, जिणहर निरखी उल्हासि ॥कर० ॥६॥ प्रतिमा वादी सासती जी, धनुष पांचसइ काय । मुनिवर श्रीमणिचूडोना जी, बिठउ प्रणमी पाय ॥ कर० ॥६१॥ ध्यार न्याननु ते धणी जी, जांणो पूत्र विकार । धर्मकथा कहो बूझवइ जी, जांणु अथिर संसार ॥ कर० ॥६२॥ सांति चितइ ते हवइ भणइ जी, तुं मूझ भयणी माय । हिवइ तुझनइ हुं स्युं करू जी, कहि मुझ करिय पसाय ॥ कर० ॥१३॥ मयणरेह वलती कहि जो, कीधु सघलु तुम्हि । नंदीसर देखाविनइ जी, पुर्यो मनोरथ अम्ह ॥ कर० ॥६॥ साध तीहां तेणि पुछीआ जी, कहु मूझ सूत विरतंत । वलतु मुनि हवि तसू कहि जी, सुणि मन करो एकति ॥ कर० ॥६५॥ सुणि सुणि जीवडा-एहनी ढाल । जंबूदोप पूरव विदेह ए, पुखलावती विजय तिहां जेह ए। श्रीमणितोरणनयर तिहां भलु, अमितजसा तिहां चक्रवतिकुलतिलु ॥ कुलतिल चक्रवति तास रमणी, पुफवती नामि सती । रत्नसीह वली पुफसीह नामिइं, सुत थया निरमल मती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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