Book Title: Madanrekha Akhyayika
Author(s): Jinbhadrasuri, Bechardas Doshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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इय भणिओ वि हु एसो जा न चलइ मदरो ब्व पवणेहिं । ता जामो पच्चक्खो हिट्ठो नमिउं मुणी सक्को ॥१८६॥ भणा महायस ! भुवणे वि तज्झ सलहिज्जए कलं गोरी । जेण तए पडलागं तण व चत्ता इमा रिद्धी ॥१८७॥ आगासं व न लिप्पसि मुर्णिद ! कत्थइ ममत्तपंकेण । रागाइसत्तुवग्गो य सव्वहा तइ विणिग्गहिओ ॥१८८॥ एवं अभित्थुणंतो रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए । तिपयाहिणं कुणंतो पुणो पुणो वंदई सक्को ॥१८९॥ तो वंदिऊण पाए चक्ककुसलक्खणे मुणिवरस्स । आगासेणुप्पइओ चलंतमणिकुंडलो सक्को ॥१९॥ न वि रुट्टो न वि तुट्ठो पालेउ नमिमुणी वि पव्वज। सिद्धि गमो इम चिय कुणंति अन्ने वि सप्पुरिसा ॥१९१॥
॥ नमिराजाख्यानकं समाप्तम् ॥
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