Book Title: Madanrekha Akhyayika
Author(s): Jinbhadrasuri, Bechardas Doshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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तीए भणियं एसो जेण तुमं वेदिओ नियबलेण । तं सोउ चंदजसो हरिसवसुभिन्नरोमंचो ॥१३८॥ नीहरिओ नयराओ निब्भरमालिगिओ सिणेहेण । दाऊण तस्स रज्जं वयं पवन्नो सयं परमं ॥१३९॥ इयरो वि दो रज्जेसु पत्तपयरिसविसेसओ जाओ । निग्गयपय पयावो वसीकयासेसरिउनिवहो ॥१४०॥ भुतस्य पंचप्पयारविसए गओ बहू कालो । अह अन्नया य जाओ दाहजरो नमिनरिंदस्स ॥१४१|| तस्सोवसमनिमित्तं घसंति विज्जोवएसओ सब्वा । अंतेउरिया गयदंतवलयपडिन्नबाहुलया ॥ १४२॥ सिरिखडाई सिसिरोवयार जणणत्थमवणिनाहस्स | तत्तो उत्तालाणं परोप्परं तेसि वलयाणं ॥ १४३ ॥ संघडण - विहडण वसविसेसओ संतयं समुच्छलिओ । हलबोरवो विरसो [सु] दुस्सहो यकन्नार्णं ॥ १४४ ॥ भणियं च तभो रन्ना न सहइ एसो ददं मह मणस्स । तत्तो एगेगं दंतवलयमुम्मोइयं ताहिं ॥१४५॥
तह वि हु जाव न पसमइ ताव य सव्वाणि ताहि मुक्काणि । एगेगं मोत्तणं तो भणिय नरवरिंदेण ॥१४६॥
संपइ किं उवसंतो वलयरवो ! तो निवेश्य रनो वयाण सरूवभिमं विवेयओ तो विचितेइ ॥ १४७॥ पेच्छसु 'अइहबवलय' मोत्तुं सव्वाणि जाडवणीयाणि । ता मह असमाहिकरो उवसंतो एस हलबोलो ॥१४८॥ ता एसो वि हु बहुभो पुत्त-कलत्ताइओ सयणवग्गो । जावऽज्ज विता जायइ जियाण हिययम्मि असमाही ॥१४९॥ अन्नं च जियस्सिमिणा बहुएण वि पासवत्तिणा ताणं । न भवइ दुहम्मि मणयं पि परियणेणं जओ मणियं ॥ १५० ॥
जइया दाहजरत्तो भइदुस्सहवाहिवेयणाविहुरो । तझ्या पासबो सयणो अवकंदए करुणं ॥ १५१ ॥
पंके खुतो व्व करी सयणगओ तडफडेइ दुक्खत्तो । सयणो वुन्नो जोयइ असमत्यो वेयणुद्धरणे ॥१५२॥ अन्नह कहमेयाओ सरसाओ भारियाओ मिलियाओ ? । सिहाउ मह कए खिज्जेतेवं वराइओ ! ।। १५३ ॥ १. अविधवावलयं -- सौभाग्यचिन्हरूपं वलयमित्यर्थः ।
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