Book Title: Madanrekha Akhyayika
Author(s): Jinbhadrasuri, Bechardas Doshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
वली राजा पूछइ किस्यु, नवि वाजइ एह । आज वलय रांणी भणइ, प्रीय सांभलु तेह् ॥करम॥१०६॥ एक एक राखी करी, मंगलनइ काजि । एह सुणी वईरागी, थयु श्रीनमिराज ॥करम० ॥१०७।। बहू मलि कलमल हुवइ, एकलां नवि राग । दोस न को हीयडइ वसइ, जीव ! तुं हवइ जागि ॥करम० ॥१०८॥ . जई छूटुं इण रोगथी, तु ल्युं व्रतजात । तिणि अरसरि काती तणी, मुनि मनी अधराति ॥करम ० ॥ १.०९॥ ईम चितवी सूतु जसइ, आवो नींद्रा अपार । निशि अंतिइ सुंहणउ ईस्यउ, देखइ सूविचार करम०॥ ॥११॥ मंदि(द)र उपरि सेत करी, तिहां चडयउ निज देह । नदी उत्तरवइ करी, जाग्यु हुं [पण] एह ॥करम० ॥११॥ देह दाघ सघलु टल्यु, हरखइं उल्हसेई । देख्यउ सुहणउ अतिभलु, मनि माइ चिंतेई करम० ॥११२।। कीहां ए सूरगिरि मइ, पूरा दीठु सुविसाल । जातीसमरण उपनु, नमीनइ ततकाल करम० ॥११३॥ पहिलं मगुंभवई गह्यु, संयम सुपसत्थ । तिहांथी सरगि उपनु, मेरू दोठउ तत्थ करम० ॥११४॥ जिणि महिमाइ आवीउ, इम ते प्रतिबूद्ध । पत्रनइ राज देई करी, रिषि थयु सुप्रसिद्ध ॥करम० ॥११५।।
ढाल । नमी दख्या लेतां महिलां आई, घरि घरि रोवइ रीखइ । देखी बंभण रूप धरी हरि, प्रश्न करी ते परीखइ रे ॥११६।। सोधजी किम दख्या लीजइ, लोक कोलाहल सुणीइ । दुखी दूखु गमावइ जे नर, साधू पूष ते भणीइ रे ॥सा०॥ ए आंकणी॥११७॥ तव नमी रायरिसी ईम बोलइ, जेम मनोरम चेई । वातवसि धंधोलो जंतइ, विहंग रहण न लहेई रे ॥सा० ॥११८॥ करइ आक्रंद विहंग ए उड्या, निज स्वारथि दूख होई । तिम ए निज स्वारथि आक्रंदइ, माहारइ तांई न कोई रे ॥सा० ॥११९॥
૧ આ નીચેની કડીઓમાં ઉત્તરાયનસૂત્રના નમિયા નામના અધ્યયનની ગાથાઓને અક્ષરશ: અનુવાદ કેટલેક સ્થળે દેખાય છે
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304