Book Title: Loka Vinshika Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Manikyasagar Suri View full book textPage 7
________________ । ॐ नमो जिनाय । आगमोद्धारक-आचार्य श्री आनन्दसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः । आगमोद्धारक-आचार्य श्री आनन्दसागरसूरिनिमितवृत्तियुता आनार्यश्रीहरिभद्रसूरिपुरन्दरप्रणीता द्वितीयचिंशिका । नत्वा प्रकल्पितानल्प-कलितार्थ जिन ब्रुवे । भव्यबोधाजमिहिरा, लोकानादित्वदीपिकाम् ॥१॥ गुरोरेवानुभावोऽय, कल्पद्रोः कल्पितार्पकात् । गरिष्ठो येन दुर्वोध लोकरूप विवेच्यते ॥२॥ यद्वाऽयो मणिसस्पर्गात् स्थितिमत् स्यात्कवादिषु । सुवर्णीभावतश्चित्रं, तत्र नाण्वपि सद्धियाम् ।।३।। सत्तर्कपेशल क्वेदं, हारिभद्र वचो गुरु ? । क्व चाज्ञातागमाध्वाहं, तद्विभासन उद्यत ॥४॥ तथापि तत्पदाम्भोज-भक्तिप्रेरितचिल्लव । मत्तो मन्दमतेर्बुद्धयै, वक्ष्ये दाता मति स मे ॥५॥ गुरुप्रभावा गुरवो, वालवुद्धिविकाशका । जयन्ति तत्पदाचैव, यत. सर्व विधास्यति ॥६॥Page Navigation
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