Book Title: Limbdi Jain Gyanbhandar Hastlikhit Prati Suchipatra
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Agamoday Samiti
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[३४]
,, पुंजराजी । २८३६
टीकासह । ,,, तृतीयावृत्ति २८३७
पंचसंधि २८३८ ,, प्रथमावृत्ति २८३९
, सावचुरि
___ सटिप्पन । २८४०
विदग्धमुखमंडन २३२२ ,, टीका
२३२३ ,, सटीक २३२४ ,, सावरि २३२५ विदवगोष्ठीआदि २३३० विष्णुभक्तिकल्पल- । २३५९
ताकाव्य , ___ ., वृत्ति २३६० वैराग्यशतकअर्थसह २४१० शता विवरण २४४२ शिशुपालवधमहाकाव्य २५४६ शंगारशतक
२५७२ सौंदर्यलहरी
३०६४
"
" , २८४१ , सार्थ - २८४२ सारस्वतमंडन २८४३ सारस्वतसूत्रअर्थ २८४४ सारस्वतसूत्रपाठ २८४५ सिद्धहेमशब्दानु
२८६८ शासनाष्टम
पादवृत्ति ,, आ०ल०वृत्त्यः । २८६९
, (द्वि० अ०प्र०।२२ ७५ सिद्धहेमशब्दानुशास-1
हेमधातुपारायण ३२२२ पा०प०भा०)) नलघुवृत्ति । हेमन्यायवृत्ति
३२२३ (प्र० अ० द्वि० ,, (द्वि०अ०४० ) २८७६
अद्वि०पा० पर्यंत
हेमलिंगानुशासन ३२२४ पान्थी तृ० अ० द्वि० पा० पर्यतृ० अ० द्वि०पा०
,, बालावबोधसह ३२२५ पर्यत च०अ०च.
, सटिप्पन तावचूरि)
३२२६ पा०पर्यंत) ,, (पष्टपादपर्य-1 २८७७
३२२७ तावचूरि) ।
,, (द्वि०अ०४०पा०) २८८६ थी तृ० अ० द्वि०
काव्य. सिद्धहेमशब्दानुशा-) २८७८ पा० पर्यंत) )
अमरुशतक सनबृहन्यास
,, (तृ०अ० दिः । २८८७ किरातार्जुनीयकाव्य ) ३२९४ (प्र०अ०
पा० पर्यंत) प्र०पा०पर्यंत)
सटीक ,, (तृ० अ० तृ०पा० १२८८८ कुमारसंभववृत्ति ५९१ ,, (प्र० अ० तृ०) २८७९
थी च०अ०पर्यंत)
, सप्तमसर्गपर्यंत ५९२ पा० थी द्वि०। । (तृ०अ०४० पा०
जिनशतक सावचुरि ९७० अ०प्र०पा
थी पं०अ० च० पर्यंत)
पा० पर्यंत)
जैनकुमारसंभव १००९ ,, (द्वि० अद्वि०। २८८० , ढुंढिका (तृ०अ० ) २८९०
दृष्टांतशतक
१२०७ पा०पर्यंत.) तृ०पा० थी च०
नृसिंह चंपूकाव्य १४०६ अ००पा०पर्य.)
नेमिद्तमहाकाव्य - १४८१ ,, (द्वि०अ० तृ०।२१८१ च०पा०पर्यंत)
, साटिप्पनक (द्वि०। २८९१ । भर्तृहरिशतकत्रय १९११ अ०वि०पा०पर्य.)।
, भाष्य
१९१२ , (तृ०अ०च० पा० } २८८२ ,, सावरि ( द्वि०] २८९२
, सस्तब्बक १९१३ पर्यंत) __ अद्वि०पापर्यंत)
भावशतक
१९२७ , सारोद्धारटिप्पन । ,, अवचुरि(द्वि०अ०२८९३
२०९४
मेघदत (तृ०अ०थी स०अ०
द्वि० पा० पर्यंत), च०पा०पर्यंत)
३४३० सिद्धांतचंद्रिका २९१८ ,, सटिप्पन २०९५ सिद्धहमशब्दानुशासन बृहद वृत्तिसटिप्पनक
संस्कृतसंख्याशब्दो ३१०७ रघुवंशमहाकाव्य २१५९
२८८४ (तृ०अ०१०पा०थी स० स्यादिसमुच्चय
,, द्वादशसर्गटीका २१६० अ०० पा०पर्यंत)
३१७४ ,, नवमसर्गटीका २१६१
कोष. अनेकार्थध्वनिमंजरी अनेकार्थसंग्रहद्विती.
यपरिच्छेद अभिधानचिंतामणी
वरि
८२
,, उणादिवृत्ति २८७० , कृदवचूरि २८७१ ,, (द्वि० अ० तृ० ) २८७२ पाथीतृ०.अ.
द्वि०पा०पर्यंत. ,, (चतुर्थाध्या-1 २८७३
,, कांडद्वय
३२२८ ३२२९
यपर्यंत.)
२८७३
,, स्वीपज्ञवृत्ति ३२३० अमरकोष धनजयनाममाला १२५८ शब्दप्रभेद
२०७४ २४७५
,, (पं०अ०प्र०पा०
पर्यंत)
, प्रकाश

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