Book Title: Kuch Paribhashika Shabda
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 4
________________ जैन धर्म और दर्शन चार विभाग करके जीवों के भावों की शुद्धि-अशुद्धि का पृथक्करण किया है। इसके लिए देखिए, दीघनिकाय का मराठी-भाषान्तर, पृ० ५६ । (२) 'पञ्चेन्द्रिय जीव के एकेन्द्रिय आदि पाँच भेद किये गये हैं, सो द्रव्येन्द्रिय के आधारपर; क्योंकि भावेन्द्रियाँ तो सभी संसारी जीवों को पाँचों होती हैं । यथा'अहवा पडच्च लद्धिंदियं पिपंचेंदिया सव्वे ॥RREE' -विशेषावश्यक । अर्थात् लब्धीन्द्रिय की अपेक्षा से सभी संसारी जीव पञ्चन्द्रिय हैं । 'पंचेदिउ ब्व बउलो, नरो व्व सव्व-विसोवलंभाओ।' इत्यादि विशेषावश्यक-३००१ अर्थात् सब विषय का ज्ञान होने की योग्यता के कारण बकुल-वृक्ष मनुष्य की तरह पाँच इन्द्रियोंवाला है । __यह ठीक है कि द्वीन्द्रिय आदि की भावेन्द्रिय, एकेन्द्रिय आदि की भावेन्द्रिय से उत्तरोत्तर व्यक्त-व्यक्ततर ही होती है। पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिनको द्रव्येन्द्रियाँ, पाँच, पूरी नहीं हैं, उन्हें भी भावेन्द्रियाँ तो सभी होती ही हैं। यह बात आधुनिक विज्ञान से भी प्रमाणित है। डा. जगदीशचन्द्र बसु की खोजने वनस्पति में स्मरणशक्ति का अस्तित्व सिद्ध किया है। स्मरण, जो कि मानसशक्ति का कार्य है, वह यदि एकेन्द्रिय में पाया जाता है तो फिर उममें अन्य इन्द्रियों, जो कि मन से नीचे की श्रेणि की मानी जाती हैं, उनके होने में कोई बाधा नहीं। इन्द्रिय के संबध में प्राचीन काल में विशेष-दर्शी महात्माओं ने बहुत विचार किया है, जो अनेक जैन ग्रंथों में उपलब्ध है। उसका कुछ अंश इस प्रकार है__इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं - (१) द्रव्यरूप और (२) भावरूप । द्रव्येन्द्रिय, पुद्गल-जन्य होने से जड रूप है; पर भावेन्द्रिय, ज्ञानरूप है, क्योंकि वह चेतनाशक्ति का पर्याय है। (१ दव्येन्द्रिय, अङ्गोपाङ्ग और निर्माण नामकर्म के उदय-जन्य है । इसके दो भेद हैं:--(क) निर्वृत्ति और (ख) उपकरण । (क) इन्द्रिय के आकार का नाम 'निर्वृति' है। निर्वृत्ति के भी (१) बाह्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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