Book Title: Kuch Paribhashika Shabda
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 27
________________ दृष्टिवाद ३२३ उक्त गुणस्थान में असातवेदनीय का उदय भी दोनों सम्प्रदाय के ग्रन्थों (दूसरा कर्मग्रन्थ, गा० २२; कर्मकाण्ड, गा० २७१) में माना हुआ है। इसी तरह उस समय आहारसंज्ञा न होने पर भी कार्मणशरीरनामकर्म के उदय से कर्मपुद्गलों की तरह औदारिकशरीरनामकर्म के उदय से औदारिक-पुद्गलों का ग्रहण दिगम्बरीय ग्रन्थ (लब्धिसार गा० ६१४) में भी स्वीकृत है । आहारकत्व को व्याख्या गोम्मटसार में इतनी अधिक स्पष्ट है कि जिससे केवली के द्वारा श्रौदारिक, भाषा और मनोवर्गणा के पुद्गल ग्रहण किये जाने के संबन्ध में कुछ भी सन्देह नहीं रहता (जीव० गा. ६६३-६६४)। औदारिक पुद्गलों का निरन्तर अहण भी एक प्रकार का आहार है, जो 'लोमाहार' कहलाता है । इस अाहार के लिए जाने तक शरीर का निर्वाह और इसके अभाव में शरीर का अनिर्वाह अर्थात् योग-प्रवृत्ति पर्यन्त औदारिक पुदगलों का ग्रहण अन्वय-व्यतिरेक से सिद्ध है। इस तरह केवलज्ञानी में आहारकत्व, उसका कारण असातवेदनीय का उदय और औदारिक पुद्गलों का ग्रहण, दोनों सम्प्रदाय को समानरूप से मान्य है । दोनों सम्प्रदाय की यह विचार-समता इतनी अधिक है कि इसके सामने कवलाहार का प्रश्न विचारशीलों की दृष्टि में आप ही आप हल हो जाता है । केवलज्ञानी कवलाहार को ग्रहण नहीं करते, ऐसा माननेवाले भी उनके द्वारा अन्य सूक्ष्म औदारिक पुद्गलों का ग्रहण किया जाना निर्विवाद मानते ही हैं । जिनके मत में केवलज्ञानी कवलाहार ग्रहण करते हैं; उनके मत से वह स्थूल औदारिक पुद्गल के सिवाय और कुछ भी नहीं है । इस प्रकार कवलाहार माननेवाले-न माननेवाले उभय के मत में केवलज्ञामी के द्वारा किसी-न-किसी प्रकार के औदारिक पुद्गलों का ग्रहण किया जाना समान है । ऐसी दशा में कवलाहार के प्रश्न को विरोध का साधन बनाना अर्थ-हीन है। (१३) 'दृष्टिवाद'-स्त्री को दृष्टिवाद का अनधिकार [समानता-] व्यवहार और शास्त्र, ये दोनों, शारीरिक और आध्यात्मिकविकास में स्त्री को पुरुष के समान सिद्ध करते हैं । कुमारी ताराबाई का शारीरिकबल में प्रो० राममूर्ति से कम न होना, विदुषी ऐनी बीसेन्ट का विचार व वक्तृत्वशक्ति में अन्य किसी विचारक वक्ता-पुरुष से कम न होना एवं, विदुषी सरोजिनी नायडूका कवित्व-शक्ति में किसी प्रसिद्ध पुरुष-कवि से कम न होना, इस बात का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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