Book Title: Kuch Paribhashika Shabda
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 34
________________ जैन धर्म और दर्शन (घ) काल-मान — केवलिसमुद्घात का काल मान आठ समय का है । (ङ) प्रक्रिया - प्रथम समय में आत्मा के प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालकर फैला दिया जाता है । इस समय उनका आकार, दण्ड जैसा बनता है ।। आत्मप्रदेशों का यह दण्ड, ऊँचाई में लोक के ऊपर से नीचे तक, अर्थात् चौदह रज्जु-परिमाण होता है, परन्तु उसकी मोटाई सिर्फ शरीर के बराबर होती है । दूसरे समय में उक्त दण्ड को पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण फैलाकर उसका आकार, कपाट ( किवाड़ ) जैसा बनाया जाता है। तीसरे समय में कपाटाकार आत्म-प्रदेशों को मन्याकार बनाया जाता है, अर्थात् पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, दोनों तरफ फैलाने से उनका श्राकार रई ( मथनी ) का सा बन जाता है। चौथे समय में विदिशाओं के खाली भागों को आत्म प्रदेशों से पूर्ण करके उनसे सम्पूर्ण लोक को व्याप्त किया जाता है । पाचवें समय में आत्मा के लोक व्यापी प्रदेशोंको संहरण-क्रिया द्वारा फिर मन्थाकार बनाया जाता है । छठे समय में मन्थाकार से कपाकार बना लिया जाता है। सातवें समय में श्रात्म- प्रदेश फिर दण्ड रूप बनाए जाते हैं और आठवें समय में उनकी असली स्थिति में - शरीरस्थ - किया जाता है । ३२० (च) जैन दृष्टि के अनुसार श्रात्म व्यापकता की संगति - उपनिषद्, भगवद्गीता आदि ग्रन्थों में आत्मा की व्यापकता का वर्णन किया है । 'विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतस्स्यात् ।" - श्वेताश्वतरोपनिषद् ३--३ ११--१५ 'सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् । सर्वतः श्रुतिमल्लोके, सर्वमावृत्य तिष्ठति । - भगवद्गीता, १३, १३ । जैन- दृष्टि के अनुसार यह वर्णन अर्थवाद है, अर्थात् आत्मा की महत्ता व प्रशंसा का सूचक है । इस श्रर्थवाद का आधार केवलिसमुद्घात के चौथे समय में आत्मा का लोक-व्यापी बनना है । यही बात उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने शास्त्रवार्त्तासमुच्चय के ३३८ वें पृष्ठ पर निर्दिष्ट की है । जैसे वेदनीय आदि कर्मों को शीघ्र भोगने के लिए समुद्घात क्रिया मानी जाती है, वैसे ही पातञ्जल योग दर्शन में 'बहुका निर्माण क्रिया' मानी है जिसको तत्त्वसाक्षात्कर्ता योगी, सोपक्रम कर्म शीघ्र भोगने के लिए करता है । —बाद ३. सू० २२ का भाग्य तथा वृत्ति; पाद ४, सूत्र ४ का भाष्य तथा वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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