Book Title: Kuch Paribhashika Shabda Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 2
________________ २६८ जैन धर्म और दर्शन जम्बूवृक्ष तो श्रा गया । अब फलों के लिए ऊपर चढ़ने की अपेक्षा फलों से लदी हुई बड़ी-बड़ी शाखावाले इस वृक्ष को काट गिराना ही अच्छा है ।' यह सुनकर दूसरे ने कहा - ' वृक्ष काटने से क्या लाभ ? केवल शाखाओं को काट दो ।' तीसरे पुरुष ने 'कहा - 'यह भी ठीक नहीं, छोटी-छोटी शाखाओं के काट लेने से भी तो काम निकाला जा सकता है ?' चौथे ने कहा- 'शाखाएँ भी क्यों काटना १ फलों के गुच्छों को तोड़ लीजिए ।' पाँचवाँ बोला- 'गुच्छों से क्या प्रयोजन ? उनमें से कुछ फलों को ही ले लेना अच्छा है ।' अन्त में छठे पुरुष ने कहा- 'ये सब विचार निरर्थक हैं; क्योंकि हमलोग जिन्हें चाहते हैं, वे फल तो नीचे भी गिरे हुए हैं, क्या उन्हीं से अपना प्रयोजनसिद्ध नहीं हो सकता है ? ( २ ) - कोई छह पुरुष धन लूटने के इरादे से जा रहे थे। रास्ते में किसी गाँव को पाकर उनमें से एक बोला- 'इस गाँव को तहस-नहस कर दो-मनुष्य, पशु, पक्षी, जो कोई मिले, उन्हें मारो और धन लूट लो ।' यह सुनकर दूसरा बोला --- पशु, पक्षी श्रादि को क्यों मारना ? केवल विरोध करने वाले मनुष्यों ही को मारो ।' तीसरे ने कहा- 'बेचारी स्त्रियों की हत्या क्यों करना ? पुरुषों को मार दो ।' चौथे ने कहा- सब पुरुषों को नहीं; जो सशस्त्र हों, उन्हीं को मारो।' पाँचवें ने कहा--' जो सशस्त्र पुरुष भी विरोध नहीं करते, उन्हें क्यों मारना ।' अन्त में छठे पुरुष ने कहा--'किसी को मारने से क्या लाभ? जिस प्रकार से धन अपहरण किया जा सके, उस प्रकार से उसे उठा लो और किसी को मारो मत। एक तो धन लूटना और दूसरे उसके मालिकों को मारना यह ठीक नहीं ।' इन दो दृष्टान्तों से लेश्याओं का स्वरूप स्पष्ट जाना जाता है । प्रत्येक दृष्टान्त के छह-छह पुरुषों में पूर्व-पूर्व पुरुष के परिणामों की अपेक्षा उत्तर-उत्तर पुरुष के परिणाम शुभ, शुभतर और शुभतम पाए जाते हैं । उत्तर-उत्तर पुरुष के परिणामों में संक्लेश की न्यूनता और मृदुता की अधिकता पाई जाती है । प्रथम पुरुष के परिणाम को 'कृष्णलेश्या' दूसरे के परिणाम को 'नीललेश्या', इस प्रकार क्रम से छठे पुरुष के परिणाम को 'शुक्ललेश्या' समझना चाहिए । - आवश्यक हारिभद्री वृत्ति पृ० २०५ तथा लोकप्रकाश, स० ३, श्लो३६३-३८० । Jain Education International For Private & Personal Use Only D www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 43