Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 22
________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका इसीप्रकार सम्यक्त्व पर्याय में भी विलक्षण परिणाम पद्धति घटित करें। वह पर्याय अपने स्वरूप से उत्पन्न हुई, अतः उत्पादरूप है। सम्यक्त्व का उत्पाद ही मिथ्यात्व का व्यय है, अतः मिथ्यात्व की अपेक्षा सम्यक्त्व पर्याय व्ययरूप हैं तथा त्रिकालवी परिणामों के अखण्ड प्रवाहक्रम में प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में सदा विद्यमान है, अतः वह ध्रुवरूप है। इसीप्रकार अन्य अनेक उदाहरणों से उपर्युक्त बिन्दुओं को समझाया जा सकता है। परस्पर अनुस्यूति :- दो भिन्न अंगों में एकता का आधार ही अनुस्यूति है। यद्यपि प्रत्येक प्रदेश और प्रत्येक परिणाम परस्पर भिन्न-भिन्न हैं, तथापि उनमें कथञ्चित् भिन्नता है, सर्वथा भिन्नता नहीं। जिस द्रव्य के वे प्रदेश और परिणाम हैं, वह द्रव्य उनमें सदा विद्यमान हैं, अतः वे प्रदेश और परिणाम मानों उस द्रव्य के कारण परस्पर अनुस्यूतिरूप हैं अर्थात् बंधे हैं। हार में सभी मोती धागे में गुंथे हैं, अर्थात् उनमें परस्पर अनुस्यूति है। भारत के सभी प्रान्त, जिले और गाँव परस्पर भिन्न हैं; फिर भी प्रत्येक प्रान्त, जिले और गांव में एक अखंड भारत विद्यमान है, अर्थात् उन प्रान्त जिलों और गांवों में परस्पर अनुस्यूति से रचित एक वास्तुपना है, अतः भारत एक अखंड राष्ट्र है। द्रव्य, स्वभाव से ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक परिणामों की परम्परा में रहता है, इसलिए, द्रव्य स्वयं भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। प्रश्न :२१. प्रदेश किसे कहते हैं? | २२. परिणाम किसे कहते हैं? अखंड है। २३. प्रदेशों और परिणामों में क्रम क्यों| २. द्रव्य के विस्तारक्रम का अंश प्रदेश है। ३. क्षेत्र में प्रदेशों का एक नियमित विस्तार २४. त्रिलक्षण परिणाम पद्धति क्या है? | क्रम है। **** ४. मोतियों के हार में जो मोती जिस स्थान क्रम में हैं, उसी नम्बर पर सदा रहेगा, क्षेत्र और काल का नियमित उसमें परिवर्तन सम्भव नहीं है (अन्यथा क्रम हार टूट जाएगा।) गद्यांश १३ उक्त प्रकरण में ..................वह ५. मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता आदि क्षेत्राशों तदनुसार ही होती है। के ही नाम हैं। जिसप्रकार मुम्बई के (पृष्ठ २२ पैरा २ से पृष्ठ २४ पैरा २ क्षेत्र को वहाँ से उठाकर दिल्ली वाले तक) क्षेत्र में नहीं रखा जा सकता, उसीप्रकार जिसप्रकार क्षेत्र में प्रत्येक प्रदेश एक ही प्रदेश को अपने स्थान से का क्रम नियमित अर्थात् सुनिश्चित खिसकाकर आगे पीछे नहीं किया जा है, उसीप्रकार काल अर्थात् पर्याय सकता। के प्रगट होने का काल भी नियमित अर्थात् सुनिश्चित है। सी......... द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का सन्तुलन ही व्यवस्थितपना है, तथा इनका असन्तुलन अव्यवस्थितपना है। क्षेत्र और काल के नियमित क्रम ६. लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने | को आगामी पृष्ठ पर दी गई तालिका ही प्रत्येक जीव के प्रदेश हैं। के माध्यम से समझा जा सकता है। ७. लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर क्षेत्र का नियमित विस्तार क्रम | एक-एक कालाणु खचित है। । १. द्रव्य के सम्पूर्ण प्रदेशों को एक साथ | काल का नियमित प्रवाह क्रम । विस्तार की अपेक्षा से देखा जाए तो | १. द्रव्य के त्रिकालवर्ती परिणामों को एक उसका सम्पूर्ण क्षेत्र एक अर्थात् | प्रवाह की अपेक्षा एक साथ देखा जाए | 23

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