Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 65
________________ १२८ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका ७. कार्य की उत्पत्ति में काललब्धि को मुख्य कर अन्य समवायों का निषेध ही कर देना सम्यक् अनेकान्त है। प्रश्न ३. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए? १. प्रत्येक परिणाम स्वरूप से उत्पन्न होने से ........... है। २. प्रत्येक परिणाम पूर्वरूप से विनष्ट होने से ...............है। ३. प्रत्येक परिणाम प्रवाहक्रम में स्वकाल में स्थित होने से ...........है। ४. प्रत्येक परिणाम अपने स्वकाल में ................... विद्यमान है। ५. तीनों काल के एक-एक समय में प्रत्येक गुण की ........... खचित है। ६. भवितव्यता की शक्ति ............ है अर्थात् उसे बदला नहीं जा सकता। ७. आगम से ........... की सिद्धि की है एवं उससे ............ की सिद्धि की गई है। ८. ..................... पूर्वक ही क्रमबद्धता ख्याल में आती है। ९. हमें अव्यवस्थित दिखनेवाली व्यवस्था भी पूर्व ........ और ........ होती है। १०. उत्पन्न होने वाला कार्य ही .......... का ज्ञापक है। ११. प्रत्येक द्रव्य की पर्यायें तीन काल के .................. बराबर है। १२. द्रव्यदृष्टि प्राप्त करने के लिये पर्यायों की ............. की प्रतीति करना आवश्यक है। प्रश्न ४. निम्न प्रश्नों के उत्तर सही उत्तर पर चिन्ह ( ) लगाईये? १. वस्तु के परिणमन की विशेषता है। अ. अनियमितता ब. अव्यवस्थित स. स्वतंत्र द. प्रजातंत्र २. आगम से सिद्ध होती है। अ. सामाजिकता ब. सांस्कृतिकता स. सर्वज्ञता द. संप्रभुत्ता ३. अकर्त्तावाद का वास्तविक अर्थ है। अ. ईश्वर सृष्टि का कर्ता है ब. एक दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है। स. अज्ञानी पर का कर्ता है द. जीव रागादि का कर्ता है। ४. क्रमबद्धपर्याय में यह शामिल नहीं है। अ. द्रव्य की निश्चितता ब. द्रव्य की नित्यता स. भाव की निश्चितता यह कथन गलत है अ. सभी जीव पूर्ण वीतरागी हैं। ब. पर्यायें नियमित हैं स. जगत पूर्ण व्यवस्थित है।

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