Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ ५२ क्रमबद्धपर्याय: निर्देशिका ऐसा क्यों हुआ ? ऐसा प्रश्न पुनः किया जाए। उसके सम्भावित उत्तर में ऐसा क्यों हुआ ? पुनः प्रश्न किया जाए। इसप्रकार प्रश्नोत्तर करते-करते भवितव्यता का यथार्थ स्वरूप समझा जा सकता है। एक व्यक्ति स्कूटर से कहीं जा रहा था। पीछे से तेज गति से आते हुए एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी, जिससे उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो गई? अब निम्नानुसार प्रश्नोत्तर सम्भावित हो सकते हैं : प्रश्न : उत्तर : लग गई? प्रश्न : उत्तर : ट्रक चालक तेज क्यों चला रहा था ? ड्राईवर शराब के नशे में था, इसलिए उसे तेज गति का ध्यान नहीं था । ड्राईवर ने शराब क्यों पी थी? प्रायः सभी ड्राईवर शराब पीकर ही चलाते हैं । उसे तो बचपन से ही शराब पीने की आदत पड़ गई थी। प्रश्न : उत्तर : यह दुर्घटना कैसे हुई ? ट्रक चालक तेज गति से ट्रक चला रहा था, इसलिए टक्कर प्रश्न : उत्तर : उसे बचपन से ऐसी आदत क्यों पड़ गई थी ? वह निम्न कुल में जन्मा था । उसका पिता भी ड्राईवर था और वह भी शराब पीता था, फिर नशे में उसकी माँ को गालियाँ देता था, मारता था वह सब देख कर उसकी आदत ऐसी पड़ गई। यह व्यक्ति ऐसे कुल में क्यों जन्मा ? जैन कुल में जन्मा होता तो तत्त्वज्ञान और सदाचार के संस्कार पढ़ते, जिनसे वह सदाचारी विद्वान बन जाता ? इसमें कोई क्या कर सकता है? यह तो अपने-अपने कर्मों का फल है। उसने ऐसे ही अशुभ कर्मों का बन्ध किया था, जिससे ऐसा संयोग मिला। प्रश्न : उत्तर : 28 क्रमबद्धपर्याय: एक अनुशीलन प्रश्न : उत्तर : किये थे । उसने ऐसे अशुभ कर्म क्यों बाँधे ? कर्म तो अपने भावों के अनुसार बँधते हैं उसने ऐसे ही भाव प्रश्न : उत्तर : उसने ऐसे भाव क्यों किये? अच्छे भाव क्यों नहीं किये? यह तो जीव की तत्समय की योग्यता पर निर्भर है। उस समय ऐसे ही भाव होना थे अतः हुए। इसमें वह स्वयं या अन्य कोई क्या कर सकता है? ५३ जरा सोचिए ! अन्तिम प्रश्न का उत्तर इसके अलावा और क्या हो सकता है ? इसीप्रकार अन्य घटनाओं का विश्लेषण करके भी यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। यहाँ अन्तिम उत्तर में अलंघ्य शक्ति वाली भवितव्यता के ही दर्शन हो रहे हैं। यद्यपि यह बात अन्तिम प्रश्न के उत्तर में आई है, तथापि उक्त घटना के प्रत्येक अंश में व्याप्त है। जब बात भवितव्यता पर आ गई तब आगे कोई प्रश्न भी शेष नहीं रह जाता। सभी विकल्प समाप्त हो जाते हैं, किसी में इष्ट-अनिष्ट बुद्धि नहीं रहती और दृष्टि सहज ही स्वसन्मुख होने का अपूर्व पुरुषार्थ प्रगट कर लेती है। प्रश्न : २७. निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ स्पष्ट कीजिए : अ. कार्य की उत्पत्ति हेतुद्वय से होती है ? a. विवक्षित कार्य ही भवितव्यता का लिंग / ज्ञापक हेतु है? स. भवितव्यता की शक्ति अलंघ्य है? द. भवितव्यता के बिना अनेक सहकारी कारण मिलने पर भी कार्य उत्पन्न नहीं होता? २८. कार्य की उत्पत्ति सर्वज्ञ के ज्ञानानुसार होती है या भवितव्यता के अनुसार ? २९. विवक्षित कार्य में और भवितव्यता में कौन-सा सम्बन्ध है?

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