Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 57
________________ ११३ अध्याय ५ क्रमबद्धपर्याय : प्रासंगिक प्रश्नोत्तर चौथे अध्याय में क्रमबद्धपर्याय से सीधे सम्बन्धित प्रश्नोत्तर दिए गए हैं, जिनके आधार पर लघु-शिविरों में यह विषय अच्छी तरह पढ़ाया जा सकता है। यदि समय हो तो निम्न प्रश्नोत्तरों के आधार पर पाठ्य-पुस्तक में समागत अन्य प्रासंगिक प्रकरणों को तैयार कराना चाहिए। ये प्रकरण क्रमबद्धपर्याय के पोषक हैं, अत: इनका निर्णय करने से क्रमबद्धपर्याय का निर्णय निर्मल और दृढ़ होता है। क्रमबद्धपर्याय : प्रांसगिक प्रश्नोत्तर जिसप्रकार द्रव्य को सम्पूर्ण विस्तार क्षेत्र के रूप में देखा जाए, तो उसका सम्पूर्ण क्षेत्र एक ही है; उसीप्रकार द्रव्य के तीनों काल के परिणामों को एक साथ लक्ष्य में लेने पर उसका काल त्रैकालिक एक है। जिसप्रकार क्षेत्र में एक नियमित विस्तारक्रम है, उसीप्रकार काल में भी पर्यायों का एक नियमित प्रवाह क्रम है। जिसप्रकार नियमित विस्तारक्रम में फेरफार सम्भव नहीं है, उसीप्रकार नियमित प्रवाहक्रम में भी परिवर्तन सम्भव नहीं है। प्रत्येक प्रदेश का स्व-स्थान और प्रत्येक परिणाम का स्व-काल सुनिश्चित है। प्रश्न ३. विलक्षण परिणाम पद्धति को क्षेत्र और काल की अपेक्षा उदाहरण देकर समझाइये? उत्तर :- एक व्यक्ति बम्बई से दिल्ली की यात्रा कर रहा है। जब बड़ौदा आया तब उसने अपने सहयात्री से पूछा कि सूरत कब आएगा? तब वह सहयात्री बोला कि भाई साहब! सूरत तो निकल गया, अब बड़ौदा आ गया है। बड़ौदा का आना उसका स्व-रूप से उत्पाद है तथा बड़ौदा, सूरत के अभावपूर्वक आया है। अतः वही सूरत की अपेक्षा अर्थात्पूर्व-रूप से व्ययस्वरूप है, तथा क्षेत्र के अखण्ड विस्तार में बड़ौदा जहाँ का तहाँ रहता है, वह न कहीं आता है न कहीं जाता है, अतः वही ध्रौव्यस्वरूप है । इसप्रकार बड़ौदा नामक क्षेत्र के समान प्रत्येक द्रव्य के प्रदेशों में प्रति समय उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य घटित होते हैं। एक जीव को सम्यग्दर्शन हुआ। जिसकाल में सम्यग्दर्शन हुआ उस काल का अर्थात् पर्याय का स्वरूप वह सम्यग्दर्शन स्वरूप है, अतः वह काल (परिणाम) अपने स्व-रूप (सम्यग्दर्शन) को प्राप्त करता हुआ उत्पन्न होने से उत्पादरूप है। सम्यग्दर्शन, मिथ्यात्व का अभाव करके हुआ है, अतः सम्यक्त्व का उत्पाद ही मिथ्यात्व का व्यय है, इसलिए सम्यक्त्व की उत्पत्ति मिथ्यात्व के व्ययरूप है। (यह कथन सम्यक्त्व की प्रथम पर्याय की अपेक्षा है। आगामी पर्यायें अपनीअपनी अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती सम्यक्त्व पर्यायों के व्ययरूप हैं) परिणामों के अखण्ड प्रश्न १. विलक्षण परिणाम पद्धति क्या है? उत्तर :- प्रत्येक द्रव्य के प्रदेश (कालद्रव्य को छोड़कर) और पर्यायें अपनेआपने स्वरूप से उत्पन्न और पूर्वरूप से विनष्ट तथा सभी परिणामों में एक प्रवाहपना होने से अनुत्पन्न और अवनिष्ट अर्थात् ध्रुव हैं। इसप्रकार प्रत्येक प्रदेश और पर्याय एक ही समय में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। द्रव्य इन परिणामों की परम्परा में स्वभाव से ही सदा रहता है, इसलिए वह स्वयं भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। इस प्रकार एक ही परिणाम में एक ही साथ उत्पाद-व्यय ध्रौव्यपना घटित होता है; यही विलक्षण परिणाम पद्धति है। प्रश्न २. प्रदेश और परिणाम की परिभाषा बताते हुए उनमें क्रम का कारण बताइये? उत्तर :-विस्तार क्रम के सूक्ष्म अंश को प्रदेश और प्रवाहक्रम के सूक्ष्म अंश को परिणाम कहते हैं। बहुप्रदेशी द्रव्यों के प्रदेशों में तथा प्रत्येक द्रव्य के परिणामों में एक नियमित क्रम होता है। 58

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