Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Mardi Mahakavi, Virendrakumar Sharma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 74
________________ प्रथमः सर्गः ७१ सं०व्या-अस्मिन् श्लोके दुर्योधनस्य धार्मिकत्वं निरूप्यते । अप्रतिहतादेशः सः दुर्योधनः अभिनवयौवनप्रगल्भं स्वानुजं दुःशासनं युवराजपदे नियुज्य स्वयं पुरोहितेन उपदिष्टः निरंन्तरं यज्ञेषु हवनद्रव्येण अनि प्रणयति । अतीव कुटिल सः दुर्योधनः प्रजासु आत्मानं धार्मिकत्वेन प्रदर्शयितुं प्रयत्नशील: अस्ति । दुर्योधनः धर्माचरणं करोति, पुरोहितानामाशां पालयति, स्वानुजान् प्रति स्निह्यति इत्यादिरूपा तस्य प्रशंसा प्रजासु श्रूयते । सः दुर्योधनः सम्यक् रूपेण नानाति यत् धा मैकत्य राज्ञः सर्वे जनाः साहाय्यं कुर्वन्ति । स०-इद्धं शासनं यस्य सः इद्धशासनः (बहु०)। नवं यौवनं नवयौवनं (कर्मधा०), नवयौवनेन उद्धतमिति नवयौवनोद्धतम् (तृतीया तत्पु०)। युवा चासौ राजा च इति युवराजः (कर्मधा०) युवराजस्य कर्म यौवराज्यं तस्मिन् यौवराज्ये । हिरण्यं रेतः यस्य सः हिरण्यरेतः तं हिरण्यरेतसम् (बहु०)। व्या०-अनुमतः-अनु+मन्+क्त । निधाय-नि+धा+क्त्वा-ल्यप् । धिनोति-धिन्व+लट, अन्यपुरुष, एकवचन । टि०-(१) उद्धत का अर्थ मल्लिनाथ ने धुरन्धर किया है। 'नवयौवनोद्धतम्' का दुःशासन के विशेषण के रूप में प्रयोग करके महाकवि ने यह बतलाया है कि नवीन युवावस्था के कारण दुशासन शासन के गुरु भार को वहन करने में पूर्णरूपेण समर्थ है। दुर्योधन के लिए 'इद्धशासनः' विशेषण का प्रयोग करके महाकवि ने यह बतलाया है कि नवयौवनोद्धत होने पर भी दुःशासन दुर्योधन के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता है । (२) वस्तुतः दुर्योधन बड़ा नीतिज्ञ और चालाक है। वह प्रजा को यह दिखलाना चाहता है कि वह बड़ा सजन और धार्मिक है । वह इस तथ्य को भलीभाँति जानता है कि सभी लोग धार्मिक राजा की सब प्रकार से सहायरी करते हैं। दुर्योधन की कुशलता के कारण प्रजाजनों में सर्वत्र उसकी इस प्रकार की प्रशंसा हो रही है-महाराज दुर्योधन बड़ा धार्मिक है, वह पुरोहितों के आदेशों का पालन करता है, वह अपने अनुजों से बड़ा स्नेह रखता है, वह प्रजा के हित में सर्वदा तत्पर रहता है-इत्यादि इत्यादि । (३) अनुप्रास अलंकार ।

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