Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Mardi Mahakavi, Virendrakumar Sharma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 73
________________ किरातार्जुनीयम् 'मौर्वी ज्या शिञ्जिनी गुण, इत्यमरः । तेन सहेति तुल्ययोगे' इति बहुव्रीहि धनुः नोद्यतं नोर्वीकृतम् । आननं वा कोषविजिह्म कोपकुटिलं न कृतम यस्य कोप एव नोदेति कुतस्तस्य युद्धप्रसक्तिरिति भावः । कथं ताज्ञां कारयति राज्ञ इत्यत्राह-गुणेति । गुणेषु दयादाक्षिण्यादिषु अनुरागेण प्रम्णा | माल्यपक्षे सूत्रानुषङ्गन यद्वा सौरभ्यगुणलोभेन । नराधिपरस्य शासनम् आशा । मालेव माल्यं वदिव । 'चातुर्वर्णादित्वात् स्वार्थे ध्या' इति क्षीरस्वामी। शिरोमि उह्यते धार्यते । 'वचिस्वपियजादीनां किति' इति यकि सम्प्रसारणम् । अत्रोपमा स्फुटैव ॥ २१ ॥ स यौवराज्ये नवयौवनोद्धतं निधाय दुःशासनमिद्धशासनः। मखेष्वखिन्नोऽनुमतःपुरोधसा धिनोति हव्येन हिरण्यरेतसम् ॥२२॥ अ०-इद्धशासनः सः नवयौवनोद्धतं दुःशासनं यौवराज्ये निधाय पुरोधसा अनुमतः अखिन्नः मखेपु हव्येन हिरण्यरेतसं धिनोति । श०-इद्धशासनः = प्रज्वलित (अप्रतिहत, अनतिक्रमणीय ) शासन (आदेश, आशा) वाला, जिसके आदेश का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। सः = वह (दुर्योधन)। नवयौवनोद्धतं = नवीन (नई) युवावस्था (जवानी) के कारण प्रगल्भ (प्रचण्ड, उग्र, प्रबल, धुरन्धर)। दुःशासनं = (अपने छोटे भाई) दुःशासन को। यौवराज्ये = युवराज के कर्म में, युवराज के पद पर | निधाय = नियुक्त (स्थापित, प्रतिष्ठित ) करके । पुरोधसा = पुरोहित के द्वारा। अनुमतः = अनुमति (आदेश, आज्ञा) प्राप्त करके (प्राप्त किया हुआ), उपदिष्ट । अखिन्नः = विना खिन्न हुए, बिना थके हुए, बिना आलस्य के, आलस्यरहित होकर, सतत, निरन्तर । मखेपु = यज्ञों में । हव्येन = हवि (चरु, पुरोडाश आदि हवनीय द्रव्य) के द्वारा। हिरण्यरेतसं = अग्नि को। धिनोति %D प्रसन्न करता है, तृप्त करता है। अनु०-अप्रतिहत आज्ञा वाला (जिसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसा) वह (दुर्योधन ) नवीन युवावस्था के कारण गर्वयुक्त दुःशासन को युवराज पद पर स्थापित करके (स्वयं) पुरोहित की अनुमति से यज्ञों में हवि के. द्वारा अग्नि को तृप्त (प्रसन्न) करता है ।

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