Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Mardi Mahakavi, Virendrakumar Sharma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 109
________________ १०६ किरातार्जुनीयम् पनं कर्तुमिच्छति । हे राजन् ! पूर्वस्मिन् काले यदा भवान् राज्यसिंहासनारूढः आसीत् तदा ब्राह्मणभुक्तावशिष्टान्नभश्चणेन तव शरीरं रमणीयमासीत् । अधुना वन्यानि फलान्यश्नतः भवतः तदेव शरीरं क्षीणतां प्राप्नोति । पुरा दानादिना भवतः यशः यथा प्रवृद्धमासीत् तथैव भवतः शरीरमपि पवित्रान्नभक्षणेन रमणीयमासीत् । इदानीं तु राज्यनाशात् दानाभावे कीर्तिनाशः भवति, पवित्रभोजनाभावे च शरीरं कृशं भवति । स०-द्व जाती (जन्मनी) येषां ते द्विजातयः (बहु०) द्विजातीनां शेषं (शेषः वा) इति द्विजातिशेषम् तेन द्विजातिशेषेण (घ० तरपु.)। वने भवं वन्यम् । वन्यानि फलानि इति वन्यफलानि (कर्मधा०) वन्यानि फलानि अश्नाति इति वन्यफलाशिन् (वन्यफलाशी) तस्व वन्यफलाशिनः (उपपद समास)। व्या०—रमणीयस्य भावः रामणीयकम् ; रमणीय+वुत्र (अफ)। कृशस्य भावः काय॑म् ; कृश+या । परैति-परा+s+लट , अन्यपुरुप, एकवचन । टि०-(१) दुर्योधन ने कपट का आश्रय लेकर युधिष्ठिर के राज्य को अपने अधीन कर लिया। आज युधिष्ठिर वन में इधर-उधर ठोकर खा रहा है। इधर-उधर भटकते रहने से तथा यथेष्ट भोजन के अभाव में युधिष्ठिर का शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया है। दानादि के अभाव में युधिष्ठिर का यश भी अत्यन्त क्षीण हो गया है। जब युधिष्ठिर राजा थे तब अनेक ब्राह्मण उनके यहाँ भोजन करते थे। इससे उन्हें यश मिलता था। आज तो उनके लिए अपना पेट भरना भी कठिन है। अतः दानादि के अभाव में उन्हें अब यश नहीं मिलता। द्रौपदी युधिष्ठिर को बतलाना चाहती है कि उनका शरीर भी क्षीण हो गया है और यश भी। शरीर और यश का क्षीण होना अत्यन्त अहितकर है। शरीर और यश की रक्षा के लिए शत्रु से राज्य पुनः प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है । (२) दो वस्तुओं का एक साथ कथन होने से 'सहोक्ति अलंकार ।

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