Book Title: Khavag Sedhi Author(s): Premsuri Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti View full book textPage 5
________________ * चित्र-परिचय * आ चित्रमा नीचेना भागमा भिन्न भिन्न संकेतोथी प्रासंगिक-६ गुणस्थानकोनो निर्देश करवामां आव्यो छे. ते आ प्रमाणे(१) एकदम काळारंगथी श्लु मिथ्यात्वगुणस्थानक सूचव्यु छ, क्षपक (क्षपकश्रेणि मांडनारा ) आत्माओ आ गुणस्थानकने स्पर्शीने ज आवेला होय छे. (२) काळा भाग वच्चे थोडो थोडो सफेद भाग बताववा द्वारा २जु सास्वादनगुणस्थानक सूचव्युछे. केटलाक क्षपक आत्माओ आ गुणस्थानकने स्पर्शीने अने केटलाक स्पा वगर ज आवेला होय छे. (३) त्रांसा सफेद पट्टाओथी ३जु मिश्रगुणस्थानक सूचव्यु छे. सास्वादनगुणस्थानकनी माफक आ गुण स्थानकने पण क्षपक आत्माओ विकल्पे ( भजनाए ) स्पर्शीने आवेला होय छे. (४) उभा सफेद पट्टाओथी ४थु अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानक सूचव्यु छे. आ गुणस्थानके जिनोत तत्त्व पर सहज रुचि होय छे. (५) ऊभी काळी लीटीओनी वच्चे वधारे पहोळा सफेद पट्टाओथी ५मु देशविरतिगुणस्थानक बताववामां __ आव्युछे. आ गुणस्थानकने क्षपक आत्माओ विकल्पे पर्शीने आवेला होय छे. (६) छूटी काळी रेखाओ अने आछा काळा रंगथी ६/प्रमत्तसंयतगुणस्थानक बताववामां आव्यु छे, सर्व क्षपक आत्माओ आ गुणस्थानकने नियमा स्पर्शीने आवेला होय छे. क्षपकश्रेरिणनो प्रारम्भ(७) ७मु अप्रमत्तगुरणस्थानक-अहींथी क्षपकश्रेणिनो प्रारम्भ थाय छे. चित्रमा कर्मक्षपणानो प्रयत्न करतो महाश्रमण आगे कूच करतो देखाय छे, आ गुणस्थानके क्षपक यथाप्रवृत्तकरण करे छे. (८) ८मुअपूर्वकरण गुरणस्थानक-आ गुणस्थानके क्षपक आत्मा अपूर्वकरण करे छे. (९) ९मु अनिवृत्तिबादरसम्परायगुणस्थानक-आ गुणस्थानके जीव अनिवृत्तिकरण करे छे. १०) १० मुं सूक्ष्मसम्परायगुणस्थानक-आ गुणस्थानकना चरमसमये क्षपक दारूनी उपमावाळा मोहनीयकर्मनो नाश करे छे. (१) १ला वर्तुलमां दारूनो बाटलो फूटेलो बताववामां आव्यो छे. आजुबाजु दारू ढोळाई गयो छे. तेनाथी मोहनीयकर्म नाश पामेलुजाणवु.. (१२) १२मुं क्षीणकषायगुणस्थानक-आ गुणस्थानकना चरमसमये प्रांखेपा जेवा ज्ञानावरण, दरवान जेवा दर्शनावरण अने भंडारी जेवा अन्तराय कर्मनो विनाश करे छे. (२) २ जा वर्तुलमां आंख उपरथी पाटो दूर थयेलो अने फाटेलो बताव्यो छ, तेनाथी ज्ञानावर णनो नाश जाणवो. (३) ३ जा वर्तुलमां दरवान-प्रतिहारीनुमृत्युबताववामां आव्युछे, तेनाथी दर्शनावरणनो नाश समजवो. (४) ४था वर्तुलमां भंडारी (खजानची) मृत्युशय्या पर पोढी गया छे, तेनाथी अन्तरायकर्मनो नाश जाणवो. (१३) १३मुं सयोगिकेवलिगुणस्थानक-बारमा गुणस्थानके ज्ञानावरणादि घातिकर्मोनो नाश थयो होवाथी आ गुणस्थानके आत्माओ अनन्तज्ञानादिविशिष्टगुणयुक्त होय छे. (१४) १४मुं अयोगिकेवलिगुणस्थानक-आ गुणस्थानकना चरमसमये मधुलिप्त तलवारनी धार जेवा वेदनीय, बेडी जेवा आयुष्य, चित्रकार जेवा नामकर्म, कुम्भार जेवा गोत्रकर्मनो नाश करे छे. (५) ५मा वर्तुलमा मधथो लेपायेल तलवारना टुकडा बताया छे,तेनाथी वेदनीयकर्मनो नाश समजवो. (६) ६ हा वतुलमां बेडी तुटेला बतायवामां आवी छे, तेनाथी प्रायुज्यकर्मनो नाश समजवो. (७) ७ मा वर्तुलमा चित्रकारनु मृत्यु बतायवामां आव्युछे, तेनाथी नामकर्मनो नाश जाणवो. (८) ८ मा वर्तुलमां कुम्भारनु मृत्यु बताववामां आञ्युछे, तेनाथी गोत्रकर्मनो नाश समजवो. आठे कर्मोनो नाश थवाथी आत्माओ सिद्ध थाय छे तेथी ते सिद्धात्माओ अयोगिगुणस्थानकनी उपर अर्धचंद्राकार सिद्धशिला पर बताववामां आव्या छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 786