Book Title: Ketlik Aetihasik Aprakat Krutio
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ फेब्रुअरी २०११ उपा. लक्ष्मीसागर. अने उपा. नेमिसागरजीनी पादुकानी प्रतिष्ठा कर्यानी नोंध पू. धर्मदासजीए हीरविहारस्तवनमां करी छे. १०५ आजे हीरविहारना जिनालयने सम्बन्धि कशी विगतो मळती नथी. अभ्यासुओने हीरविहारनी अन्य माहिती माटे हीरविहारस्तवन जोवा विनति. ३. हीरविजयसूरिस्वाध्याय : क्यारेक कोई महात्माना संयमादि गुणोथी आकर्षाई विद्वानोए तेमना जीवन पर सौथी वधु कृतिओ रची होय तो ते जगद्गुरु हीरविजयसूरिजी म.सा. जेटली कृतिओ प्राप्य हशे तेमांनी घणीखरी कृतिओ संग्रहीत करी पू. महाबोधिविजयजीए हीरस्वाध्याय भाग १ - २ मां प्रकाशित करी छे. छतां हजी घणी अप्रगट नानी मोटी कृतिओ मळे पण छे. अत्रे एमांनी एक अप्रगट रचना प्रकाशित कराई छे. पूज्यश्रीनी शिष्यपरम्परामां विद्याकुशल नामना कवि थया. तेमणे सं. १६१७मां चैत्र सुद ५ना दिवसे आ कृतिनी रचना करी छे. गुरुनाम गुम्फित करता कविए अनुक्रमे पू. आणन्दविमलसूरिजी, उपा. विद्यासागरजी, विजयदानसूरिजी, उपा. धर्मसागरजी, हीरविजयसूरिजी अने रूपऋषिजीनुं नाम गूंथ्युं छे. श्लोक ११ छे. कृति ठीक ठीक छे. ४. विजयप्रभसूरिस्तोत्र : तपागच्छनी परम्परामां पू. हीरविजयसूरिनी पाटे सेनसूरिजी, तेमनी पाटे विजयदेवसूरि अने तेमनी पाटे विजयप्रभसूरि थया. कच्छना मनोहरपुरमां ओशवालवंशीय सा. शिवगणनी भार्या भाणीनी कुक्षीथी सं. १६७७ माघ सु. ११ना तेमनो जन्म थयो. सं. १६८६ मां ९ वर्षनी नानी उमरे तेमणे दीक्षा लीधी. दीक्षा बाद वीरविजयना नामथी ओळखाता तेमने सं. १७०१ मां पंन्यासपद, १७१० मां आचार्यपद मळ्युं. आचार्यपदवी बाद विजयप्रभसूरिना नामथी तेओ प्रसिद्ध थया. प्राचीनमूर्तिना लेखो, ग्रन्थरचनानी / लेखननी पुष्पिकाओमां तेमनुं नाम वांचवा मळे छे. कविए तेमना गुणानुवादरूपे प्रस्तुत कृतिनी रचना करी छे. कमलबद्ध चित्रकाव्य रचवा द्वारा कविए पोतानी प्रतिभा पण रजू करी छे. कर्तानुं नाम अहीं पण गुप्त छे. कर्ता वीरसागरना शिष्य छे. 'कृपाम्भो' शब्द जो कर्ताना नाम माटे विचारीए तो कृपासागर एवं नाम बनी शके छतां अन्य माहिती मळे चोक्कस करी शकाय .

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14