Book Title: Ketlik Aetihasik Aprakat Krutio Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ १०४ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ केटलीक ऐतिहासिक - अप्रगट कृतिओ - सं. मुनिसुजसचन्द्र-सुयशचन्द्रविजयौ प्राचीन इतिहासने वर्तमान समय साथे जोडती कडी रूपे जो कोईपण सामग्री आजे प्राप्त थती होय तो ते आपणा पूर्वाचार्यो द्वारा प्रणीत साहित्य, लेखित साहित्य तथा पूर्वपुरुषोए करावेलां स्थापत्यो. ते सामग्री भलेने जैनदर्शननी होय, बौद्धदर्शननी होय, के अन्य कोईपण दर्शननी होय परन्तु ते चोक्कस प्रमाणोने रजु करे छे. अत्रे तेवी ज केटलीक जैनदर्शननी ऐतिहासिक कृतिओ अने तेनो परिचय आपणे अनुक्रमे जोइशं. १. रत्नप्रभसूरिस्तोत्रम् : प्रभु पार्श्वनाथनी श्रमणपरम्परामां शुभदत्त नामना गणधर थया. तेमनी पट्टपरम्परामां अनुक्रमे हरिदत्तसूरि - आर्यसमुद्रसूरि - श्रीकेशीगणधर - स्वयम्प्रभसूरि थया. तेमने विद्याधरेन्द्र रत्नप्रभसूरि नामना सवालाखश्रावकप्रतिबोधक - ओसवालज्ञातिस्थापक प्रभावक शिष्य हता. कवि देवतिलके प्रस्तुत कृतिमां तेमना जीवननी केटलीक महत्त्वपूर्ण बाबतोने काव्यमां गूंथी छे. मन्त्री आहडना पुत्रने सर्पदंश निवारी पुनजीवित कों, कोरंटानगरना अने उपकेशनगरना जिनालयमां योगबळे एक ज समये बे वीरबिम्बनी प्रतिष्ठा करी, सत्यिका देवीने सम्यग्दृष्टि करी इत्यादि प्रसंगो द्वारा गुरुभगवन्तना माहात्म्यनुं वर्णन करी अन्त्य पंक्तिओमां स्तोत्रपठनना फळनी कविए ओछा पण सुन्दर शब्दोमां वर्णना करी छे. प्रत सुन्दर छे. प्रतलेखन-पुष्पिका वांचवा जेवी छे.. २. हीरविहारविभूषण-श्रीऋषभदेवस्तवनम् : सुरतना निझामपुरा विस्तारमा पू. उपा. नेमिसागरजीना उपदेशथी सं. १६७५ मां 'हीरविहार' नामना जिनालय, निर्माण थयु. मूळनायक तरीके आदिनाथ प्रभुना बिम्बनी प्रतिष्ठा थई. कविए प्रस्तुत कृतिमां ते आदिनाथ प्रभुनी स्तवना करता हीरविहारना स्थापत्यनी पण उडती नोंध मूंकी छे. कृतिमां कर्ताना नामनो स्पष्ट उल्लेख नथी. पण 'रत्नसुधाकर' शब्दथी रत्नचन्द्र (उपा०) आ कृतिना कर्ता होवानुं विचारी शकाय. कृतिनी रचना कई संवतमां थई ए विचारता प्रायः १६७५ आसपास ज थई हशे. कारण पू. उपा. रत्नचन्द्रजीए आ सालमां (१६७५ वै.सु. ८) हीरविहारमा उपा० विद्यासागरजी,Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 14