Book Title: Kavyashiksha
Author(s): Vinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ 10 - बीजव्यावर्णनपरिच्छेदः। [87 अथ मातरः—ब्रह्माणी सिद्धी माहेश्वरी कौमारी वैष्णवी वाराही चामुण्डा इति सप्त मातरः / ईश्वरेणेमाः कृताः----- ब्रह्माणी निर्मिता येन भवनोद्धारकाम्यया / जगत्यां स शिवः पायादपायेभ्यो विवेकिनः // 40 // एवं सप्त श्लोका उत्पद्यन्ते, आसां बाहुप्रहरणवाहनवर्णनाभ्यः / / लघिमा वशितेशत्वं प्राकाम्यं महिमाणिमा / यत्र कामावसायित्वं प्राप्तिरैश्वर्यमष्टधा // 41 // यस्तरति महाम्भोधौ जीर्णपत्रमिवाचिरात् / लघिमावर्णने तस्य ब्रह्मापि खलु कातरः // 42 // इत्यष्टौ भवन्ति श्लोकाः / गङ्गां वन्दे—निर्मोकमुक्तिमिव गगनोरगस्य, लीलाललाटिकामिव त्रिविष्टप[विट]स्य, विक्रयवीथिमिव पुण्यपण्यस्य, दत्तार्गलामिव नरकनगर[द्वार]स्य, अंशुकोष्णीषपट्टिकामिव सुमेरुनृपस्य, दुकूलकदलिकामिव कैलासकुञ्जरस्य, पद्धतिमिवापवर्गस्य, नेमिमिव कृतयुगचक्रस्य, सप्तसागरराजमहिषी मन्दाकिनीम् / [हर्षचरिते प्रथमोच्छ्वासे ] 15 युवा-]अनङ्गयुगावतारमिव दर्शयन्तम् , चन्द्रमयीमिव सृष्टिमुप्तादयन्तम् , विलासप्रायमिव जीवलोकं जनयन्तम् , अनुरागमयमिव मार्गान्तरमारचयन्तम् , शृङ्गारमयमिव दिवसमापादयन्तम् , रागराज्यमिव प्रवर्तयन्तम् , आकर्षाञ्जनमिव चक्षुषोः, वशीकरणमन्त्रमिव मनसः, स्वस्थावेशचूर्णमिवेन्द्रियाणाम् , असंतोषमिव कौतुकस्य, सिद्धयोगमिव सौभाग्यस्य, पुनर्जन्मदिवसमिव मन्मथस्य, रसायनमिव यौवनस्य, एकराज्यमिव 20 रामणीयकस्य, कीर्तिस्तम्भमिव रूपस्य, मूलकोशमिव लावण्यस्य, पुण्यकर्मपरिणाममिव संसारस्य, प्रथमारमिव कान्तिलतायाः, सर्गाम्यास[फल]मिव प्रजापतेः, प्रतापमिव विभ्रमस्य, यशःप्रवाहमिव वैदग्ध्यस्य, अष्टादशवर्षदेशीय युवानमद्राक्षीत् / [हर्षचरिते प्रथमोच्छ्वासे ] स्त्री विभाति—पुनः संजीवनौषधिरिव पुष्पधनुषः, वेलेव रागसागरस्य, 25 ज्योत्स्नेव यौवनचन्द्रोदयस्य, महानदीव रतिरसामृतस्य, कुसुमोद्गतिरिव सुरततरोः, 1. सामान्यतोऽत्र ऐन्द्री दृश्यते, यथा माहेन्द्री चैव ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा वाराही चामुण्डा सप्त मातरः॥

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