Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, T S Nandi, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 513
________________ ३७४ करकिशलयं ७३९।३४६।२४।७ [अमरु० ९०] करिहस्तेन संबाधे ३०५।१६६।१८।३ करेण ते रणे ४६२।२२८।१४।५ [काव्यादर्श ३.२६] कर्कन्धूफलमुच्चिनोति ६६६।३०८।१६।६ कर्पूर इव ६००।२८४।२७।६ बालरामायण ३.११] कर्पूरधूलिधवल० २००।१२६।२।३ कलुषं च तवाहिते० ६५२।३०४।६।६ कल्लोलवेल्लितदृषत् ४२०।२०६।९।३ [भल्लट० ६२] कश्चित् कराभ्यां १३५।९०।१६।२ रघु० ६.१३] कष्टं कथं रोदिति २८७।१६०।२१।३ कष्टा वेधव्यथा २४४।१४४।११।३ [अनर्धराघव १.४०] कस्मिन्कर्मणि ३२२।१७२।२८।३ कस्स व न होइ २५।२८।२।१ [सप्तशतक ८८६] कातर्यं केवला ३५६।१८४।२२।३ [रघु० १७.४७] कान्ते तल्पम् १४६९६।११।२ [अमरु० १०१] कायं खायइ २५६।१४८।२०१३ काराविऊण खउरं ३८२।१९४।१६।३ का विसमा ६५४।३०४।१५।६ किं करोमि क्व १५११९८।२२।२ किं किं सिंह० १५२।१००।२।२ [कवीन्द्रवचन० (४०)] [काव्यानुशासनम् किं गौरि मां ४९८।२४६।१४।५ [रुद्रट २.१५] किंचिद्वच्मि न ४४५।२२२।१४१५ किं ददातु किं ६०६।२८६।२४।६ किं पुनरीदृशे दुर्जाते २२६।१३८।१३।३ हर्षचरित ६ (पृ. १९३)] किं वृत्तान्तैः ६१८।२९०।२६।६ [सुभाषितावलौ (२५४४) मातङ्गदिवाकरस्य] किं साक्षाद् ४५।३६।९।१ किमपि किमपि १०८०६६।२३।२ [मालतीमाधव ८.१३] किमपेक्ष्य फलं ३१५।१७०।१८।३ [किरातार्जुनीय २.२१] किमुच्यतेऽस्य ३१९।१७२।८।२ किसलयमिव १४१।९४।४।२ [उत्तरराम० ३.५] कीर्तिप्रतापौ भवतः ३८४/१९४।२४।३ कुमुदकमल० ५५९।२७०।११।६ कुरङ्गाक्षीणां २५२।१४६।२७।३ कुरङ्गीवाङ्गानि ५४०।२६४।२।६, ७२६।३४०।१३।७ कुरु लालसभूलेहे ४८५।२४०।१४।५ कुलबालियाए ६९६।३२४।१३।७ कुविन्दस्त्वं तावत् ३३४।१७६।२२।३ कुसुमसौरभ० ६६३।३०८।२६।६ [शिशुपाल० ६.१४] कृतवानसि २६९।१५२।२७।३ [कुमार० ४.७] कृतो दूरादेव ७४२।३४८।१६।७ [अमरु० १४] कृष्णार्जुनानुरक्ता ६६८।३०८।२६।६ [काव्यादर्श २.३३९] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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