Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, T S Nandi, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 526
________________ ३८७ परिशिष्ट-१ स्निग्धश्यामलकान्ति० ६८४४।४।१ स्पृशति तिग्मरुचौ २३१।१४०।३।३ हरविजय ३.३७] स्फुरदद्भुतरूपम् ६४९।३०२।२०।६ स्फूर्जद्वज्रसहस्रनिर्मितम् ६७८।३१४।१८।७ [महावीर० १.५३] स्मरदवथुनिमित्तं ७३३।३४४।१११७ [धनिकस्य दशरूपकावलोके (प्र. २, सू. ४०)] स्मरनवनदीपूरेणोढा १०२।६४।४।२ - [अमरु० १०४] स्मितं किंचित् ७२५।३४०।४।७ [सुभाषितावलौ (२२३६)] स्रस्तः स्रग्दामशोभा ३।१२।१२।१ रत्नावली १.१६] स्रस्तां नितम्बाद् ३४६।१८०।२३।३।। [कुमार० ३.५४] स्वञ्चितपक्ष्मकपाटं १०।१६।९।१ [भासस्य] स्वपिति यावदयं ३७५।१९२१८।३ स्वयं च पल्लवाताम्र० ४९१।२४२।१८।५ [उद्भट ४.१५] स्विद्यति कूणति ५६०।२७०।१४।६ । स्वेदाम्भः कणिकाचिते ७००।३२६।८।७ [सुभाषितावलौ (२०७१)] हंस प्रयच्छ १४४।९६।१।२ [विक्रमोर्वशीय ४.१७] हंसाण सरेहिं ५५८।२७०।७।६ [सप्तशतक ९५३] हंसो ध्वासविरावी ५१४।२५४।१८।६ हन्तुमेव प्रवृत्तस्य ३७६।१९२।१२।३ [भामह १.५१] हा धिक्सा किल ३०८।१६८।४।३ हा नृप हा बुध २५५।१४८।१५।३ हिरण्मयी साललतेव ५३५।२६२।६।६ भट्टि० २.४७] हृदये चक्षुषि ५८२।२७८।२८।६ [रुद्रट ९.८] हृदये वससीति १००।६२।२५।२ __ [कुमार० ४.९] होई न गुणाणुराओ ५४८।२६६।१८।६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548