Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, T S Nandi, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 524
________________ ३८५ परिशिष्ट-१ शिरामुखैः स्यन्दत ६८८।३१८।२४।७ [नागानन्द ५.१५] शिरीषादपि ६०४।२८६१६६ [नवसाहसाङ्क १६.१८] शीतांशोरमृतच्छटा ४१७।२०४।१७।३।। - लोचने (पृ. २३३) अभिनवगुप्तस्य] शीर्णघ्राणांघ्रिपाणीन् ३४२।१८०।२।३ [सूर्यशतक ६] शीर्णपर्णाम्बु० ६२२१२९२।२२।६ [उद्भट २.९] शून्यं वासगृहं १।१०।१०।१ _[अमरु० ८२] शूलं शलन्तु शं ४९३।२४४।१८।५ रुद्रट ४.१८] शृङ्गारी गिरिजानने १८३।११६७३ [शृङ्गारतिलक १.१] शैलात्मजापि १०१।६४।४।२ [कुमार० ३.७५] शैलेन्द्रप्रतिपाद्यमान० ६३२।२९६।१०।६ श्यामास्वङ्गं ११।१६।१४।१ मेघदूत २.४४] श्यामां श्यामलिमानम् ४२१।२०६।१६।३।। [विद्धशाल० ३.१] श्रीपरिचयाद् १७७।११०।२६।२ [सुभाषितावलौ (२८५४) रविगुप्तस्य] श्रुतिसमधिकमुच्चैः ४११।२०२।११।३ शिशुपाल० ११.१] श्रुतेन बुद्धिर् ४०४।२००।२।३ श्वासा बाष्पजलं ७१६।३३२।१८१७ स एकस्त्रीणि ५९९।२८४।२३।६ स एष भुवन० ४३८।२२०।११।४ सगं अपारिआयं ५६४।२७२।७।६ सेतुबन्ध ४.२०] स गतः क्षितिम् १५५।१००।२६।२ [किरात० १३.३१] सणियं वच्च २१।२६।४।१ सत्यं त्वमेव सरलो ५९१।२८२।१९।६ रुद्रट ९.३५] सत्यं मनोरमा: १८९।१२०।४।३ [औचित्यविचारचर्चायां व्यासस्य; सुभाषितावलौ (३२६६)] सत्त्वं सम्यक् ५०१।२४८।२३।५ [देवीशतक ५५] स त्वारं भरतो ४५९।२२६।२५।५ [रुद्रट ३.१८] सत्त्वारम्भरतो० ४६०।२२८।१।५ [रुद्रट ३.१९] सदक्षिणापाङ्गनिविष्टमुष्टिं ६१५।२९०१११।६ [कुमार० ३.७०] सदा मध्ये यासाम् ३७०।१९०।१३।३ संध्यां यत्प्रणिपत्य १०६।६६।६।२ सपदि पङ्क्तिविहङ्गमनामभृत् ३२०।१७२।१७।३ सभ्रूभङ्ग ७३५।३४४।२३।७ [धनिकस्य दशरूपकावलोके (प्र.२, सू. ४१)] समदमतङ्गज ५९६।२८४।१०।६ समुत्थिते धनुर्ध्वनौ १९०।१२०।१५।३ [अर्जुनचरिते] सम्यग्ज्ञानमहाज्योतिर् २९२।१६२।१७।३ स यस्य दशकन्धरं ५००।२४८।१०।५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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