Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, T S Nandi, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 525
________________ ३८६ [काव्यानुशासनम् सरले साहसरागं ४९२।२४४।१४।५ सानुज्ञमागमिष्यन् ६३९।२९८।२२।६ मालतीमाधव ६.१०] [रुद्रट ७.५७] सरस्वति पदं ४६१।२२८।११।५ सा बाला वयम् ६०११२८६।२।६ सरांसीवामलं २८०।२५८।१४।३ __ [अमरु० ३४] सरोजपत्रे परिलीनषट्पदे ६२८।२९४।२१।६ सा रक्षतादपारा ४५८०२२६।१९।५ सर्वकार्यशरीरेषु २९५।१६२।२८।३ देिवीशतक १६] शिशुपाल० २.२८] सालोए च्चिअ ७१५।३३२।१४।७ सर्वाशारुधि दग्धवीरुधि ४३७।२२०।२।५ [सप्तशतक १३०; गाथा० २.३०] [सुभाषितावलौ (१७०८) भट्टबाणस्य] सावशेषपदम् १२८३८६।१७।२ स वक्तुमखिलान् ७७।४८।१२।१ [शिशुपाल० १०.१६] सविता विधवति ५२०/२५६।१६।६ साहाहें]ती सहि ३६।३२।२४।१ सव्रीडा दयितानने १८५।११६।२१।३ __ [सप्तशतक ८६०] [सुभाषितावलौ (७८)] - सितनृशिरःसजा ४७७/२३६।१४।५ सशमीधान्यपाकानि २७८।१५८।२।३ सिहिपिच्छकण्णऊरा ७२९।३४२।१११७ सशोणितैः क्रव्यभुजां १९३।१२२।४।३ [सप्तशतक १७३; गाथा० २.७३] सस्नु: पयः पपुः २६४।१५२।२।३ सीतां ददाह ५१५।२८४।६।६ [शिशुपाल० ५.२८] सुधाबद्धाग्रासैर् ५७१।२७६।३।६ सह दीर्घा मम ६१२।२८८।२२।६ [विद्धशाल० १.३१] [काव्यादर्श ३.३५२] सुव्वइ समागमिस्सइ ३२।३०।२९।१ सहस्राक्षैरङ्गैर् ३६६।१८८।१६।३ _[सप्तशतक ९६२] सहसा नलिनी ४७६।२३६।९।५ सुरालयोल्लासपर: ३२४।१७४।९।३ संकेतकालमनसं ६४१२३००।२।६ सुवर्णपुष्पां ६९।४४।१३।१ संप्रहारे प्रहरणैः १८४।११६।१३।३ सूर्यायति सुधारश्मिम् ५१६।२५६।११६ संप्राप्तेऽवधिवासरे १५६।१०२।२।२ सृजति च जगद् ५९०।२८२।१५।६ संयतं याचमानेन ४५६।२२६।९।५ सो नत्थि एत्थ ६६५।३०८।१२।६ [देवीशतक १४] सोह व्व लक्खणमुहं ५२१।२५६।२७६ संरम्भः करिकीट० ३५३।१८४।२।३ सेतुबन्ध १.४८] संहयचक्काअजुआ २१५।१३६।२।३ सौन्दर्यस्य तरङ्गिणी ५४१।२६४।८।६ साधनं सुमहद् २९९।१६४।१६।३ स्तनगुरुजघनाभिराममन्दं ४७८।२३६।२३।५ साधु चन्द्रमसि ३५७१८४।२७।३ स्तुमः कं वामाक्षि १६९।१०८।२।२ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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