Book Title: Kavyanushasanam
Author(s): Hemchandracharya, T S Nandi, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 514
________________ ३७५ परिशिष्ट-१ कृष्णेनाम्ब ११६७४।२३।२ [सुभाषितावलौ (४०) चन्द्रकस्य] केनेमौ दुर्विदग्धेन ४७९।२३८।२।५ केलिकन्दलितस्य ९३।५६।१८।२ कोदण्डं यस्य ४४।३६७१ कोपात्कोमलबाहु ९।१६।२।१ [अमरु० ९] कोऽयं द्वारि हरिः ४९९।२४६।२०१५ [सुभाषितावलौ [१०४]] कोऽलंकार: सताम् ६५३।३०४।२४।६ [रुद्रट ७.८१] क्रीडन्ति प्रसरन्ति ४९६।२४६।२।५ [रुद्रट ४.२१] क्रोधं प्रभो संहर २००।१२६।२।३ [कुमार० ३.७२] क्रौञ्चाद्रिरुद्दामदृशद् ५९३।२८२।२७।६ क्वचिदने प्रसरता ३२७/१७४।२३।३ [भामह २.५५] क्क सूर्यप्रभवो ५५१।३६८।२।६ रघु० १.२] क्वाकार्यं शशलक्ष्मणः १२११८२।१०।२ [सुभाषितावलौ (१३४३) कालिदासस्य] क्षणं कामज्वरोच्छित्त्यै ५०४।२५२।२।६ [उद्भटः काव्यालङ्कार० १.१८] क्षिप्तो हस्तावलग्नः १९५/१२२।१९।३ [अमरु० २] खं येऽभ्युज्ज्वलयन्ति ६५।४२।१२।१ खरेण खण्डिता० ६७९।३१६।२।७ गङ्गातीरे हिमगिरिशिला० ११६बा७६।६।२ [भर्तृहरिः वैराग्यशतक १८] गङ्गेव प्रवहतु २८६।१६०।११।३ गजो नगः कुथा ५४६।२६६।३।६ गर्वमसंवाह्यमिमम् ५८६।३८०।२३।६ [रुद्रट ८.७८] गाढालिंगण० ७५।४८।२।१ गाढालिङ्गनवामनी० २१६।१३६।७।३ [अमरु० ४०] गाढालिङ्गितपीडितस्तन० ७१४।३३२।५।७ - शृङ्गारतिलक परि. १ का. ६ अनन्तरम्] गाम्भीर्यमहिमा ५०६।२५२।११६ गुणानामेव दौरात्म्याद् ५५३।२६८।११।६ गुरुगर्भभरक्लान्ताः १६०।१०४।१२।२ गुरुयणपरवस ३४।३२।८।१ [सप्तशतक८५१] गृहाणि नाम ९७।६०।१३।२ काव्यादर्श १.८६] गृहीतं येनासी: ३७८।१९२।२४।३ वेणी० ३.१९] गोरपि यद्वाहनताम् ३६५।१८८।१३।३ ग्रथ्नामि काव्यशशिनं ४०९।२०२।२।३ ग्रीवाभङ्गाभिरामम् ११४।७२।२५।२ [शाकुन्तल १.७] चकार काचित् ७३१।३४२।२२७ चकाशे पनसप्रायैः २११११३४।२।३ चकास्ति वदनस्यान्तः ४१०।२०२।५।३ चक्रं दहतारं ४५५।२२६।६।४ [रुद्रट ३.४] चक्री चक्रारपति ४०८।२००।२२।३ [सूर्यशतक ७१] चञ्चद्भुजभ्रमित ११२।७२।२।२ वेणी० १.२१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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