Book Title: Karmagrantha Part 4 Shadshitik
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 269
________________ २१६ Jain Education International गाथाङ्क ६,३२ ५४,५७ ६-२,१२,१७,२०,२८,३४ ६४,६५ १६,१७,१८,२०,२१,२२,२७ प्राकृत चतुरिंदि चउवीस चक्खु(६२-४) चरण चरम चरिमदुग चिय संस्कृत चतुरिन्द्रिय चतुर्विंशति चक्षुष् चारित्र चरिम चरिमदिळक हिन्दी चार इन्द्रियोंवाला जीव-विशेष। चौबीस। 'चक्षुर्दर्शन' नामक दर्शन-विशेष! 'चारित्र'। अखीरका। अन्त के दो (तेरहवाँ और चौदहवाँ गुणस्थान।) ६० ७४ एव ही। For Private & Personal Use Only चौथा कर्मग्रन्थ ४,८-२,१७,१८,२३,२७,३६, ३७,५९,६१,५०-२,६१ १० छः। छक्क,ग) षट् (-क) छक्काय (५१-९) षट्काय छचत्त षट्चत्वारिंशत् छजियवह षड्जीववधः (१७७-१०) छलेस षड्लेश्या و पाँच 'स्थावर' और एक 'बस', इस तरह छ: काय। छयालीसा पाँच 'स्थावर' और एक 'बस' इस तरह छः प्रकार के जीवों का वधा कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल' नामक छ: लेश्याएँ। ७,२५ www.jainelibrary.org

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