Book Title: Karmagrantha Part 4 Shadshitik
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 268
________________ Jain Education International गाथाङ्क ७२,७९,८१ प्राकृत गुरु(-अ) संस्कृत गुरु(-क) हिन्दी उत्कृष्ट और, फिर। २३,६९,८४,८५ २,५,७,१०,१५,१८,१९,२० न २,२१,२७,३०,३४-२,३५-३ हूँ ३८,५०,५२,६०,६७-३,७०-४ ७७,७९-२ For Private & Personal Use Only चउ(५२-८) चउगइ चतुर चतुर्गति परिशिष्ट चउघाइन् चतुर्धातिन् चार। 'मनुष्यगति', 'देवगति', 'तिर्यग्गति' और नरकगति' नामक चार गतियाँ। 'ज्ञानावरण, 'दर्शनावरण, 'मोहनीय' और 'अन्तराय' नामक चार कर्म। चौथा। चौदह। चार कारणों से होनेवाला बन्धविशेष। चार ‘पल्यों' का वर्णन। ८० चउत्थय चउदस ५२,५३ ७२ ८,३६,६३,७६ www.jainelibrary.org चतुर्थक चतुर्दश चतुःप्रत्ययक चतुष्पल्यप्ररूपणा चतुर् चउपञ्च चउपल्लपरुवणा चउर् चार। २१५

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