Book Title: Karmagrantha Part 4 Shadshitik
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 273
________________ Jain Education International गाथा हिन्दी २२० ८४ ५५ ५२,५३ १०,१७,६४ ५४ प्राकृत संस्कृत तिक्खुत्तो त्रिकृत्व: तीन बार। तिचत्त त्रिचत्वारिंसत् तेतालीस। तिपच्चअ त्रिप्रत्ययक तीनं कारणों से होनेवाला बन्धविशेष। तिय(गइर५२-६) त्रिक तीन, तीन इन्द्रियोवाला जीव-विशेष। तियहिअचत्त विकाधिकचत्वारिंशत् तेंतालीस। तिरि(-य)र-गई) तिर्यञ्च(-गति) 'तिर्यग्गति' नामक गति-विशेष। (५१-१७) तिवग्गिउं त्रिवगितुम् तीन बार वर्ग करने के लिये। तिवग्गिय त्रिवर्गित तीन बार वर्ग किया हुआ। तिविह त्रिविध तीन प्रकार। तीन प्रकार। १०,१६,१९,२६,३०,३७ ८१,८५ For Private & Personal Use Only ८३ चौथा कर्मग्रन्थ ७१ तिहा त्रिधा तुरिय तुरीय चौथा। बराबर ७२,८०,८६ ६६,७६ ४१ ५० १३,१५ २६,३५-२,७,२२ www.jainelibrary.org तुल्ल तेउतिग तेऊ६४-१२) तेर(-स) तुल्य तेजस्त्रिक तेजः त्रयोदशन् 'तेजः', 'पद्म' और शुक्ल' ये तीन लेश्याएँ। 'तेजः' नामक लेश्या-विशेष। तेरह।

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