Book Title: Karmagrantha Part 4 Shadshitik
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 287
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org गाथाङ्क ७९ २४ २२,३६ ७, ८-३,२३,५४, ५९-२, ६०-२,७९ २, ३- २, ४, ५, ६, ८, ९, १४, १७, १८, १९, २५, ३१,४५ - २ ७,१४,४५ १३,४५ ६४,६८ ४०,६२,६९,८२ २१,२८,४२ ८२ ७८ ९,४५, ६४, ६५-२,७० १४ प्राकृत सगासंख सच्चेयर(९०-१४) सत्येतर १७,९१-१६,१९) सठाण सत्त सन्नि(१०-१९, ५०-४) सन्निदुग सन्नियर (६७-१६) सन्निवाइय संस्कृत सप्तमासंख्यं सम समइ (ई) य समय समयपरिमाण सम्म (४९-२५) सम्मत्ततिग स्वस्थान सप्तन् संज्ञिन् संज्ञिद्विक संज्ञीतर सान्निपातिक सम सामायिक समय समयपरिमाण सम्यग् सम्यक्त्वत्रिक हिन्दी सातवाँ असंख्यात । सत्य और असत्य | अपना-अपना गुणस्थान। सात। मनवाला प्राणी । पर्याप्त और अपर्याप्तसंज्ञी | मनवाला और बेमन प्राणी । 'सान्निपातिक' नामक एक भावविशेष । बराबर । 'सामायिक' नामक संयमविशेष। कालका निर्विभागी अंश । समयों की मिकदार। 'सम्यग्दर्शन' | 'औपशमिक', 'क्षायिक' और 'क्षायोपशमिक' नामक तीन सम्यक्त्व विशेष । २३४ चौथा कर्मग्रन्थ

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