Book Title: Karan Prakash
Author(s): Bramhadev, Sudhakar Dwivedi
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office
View full book text
________________
( २ )
O
रा
राशिद्वयं स्वदेशीयाक्षभागहीनं शेषसमे भानावगस्त्योऽस्तमुपैति । भषट्कमस्तार्कहीनमवशेषसमे द्युमणौ चोदयं व्रजति कुम्भज इति रीतिर्वर्त्तते अगस्त्यास्तोदयसाधने ह्यत्र । अनेन विधिनाऽवन्तिकायां सार्द्धद्विद्विपलभागपुर्थ्यां यदा रविः I ७ | ३० तदाऽगस्त्यास्तः ॥ यदा च रविः == ६ - ( १ । ७ | ३०)=४"। २२ । ३० तदाऽगस्त्योदयः । अयमुदयश्च बृहत्संहितोक्तेन “ तच्चोज्जयिन्यामगतस्य कन्यां भागैः स्वराख्यैः स्फुटभास्करस्ये " त्यादिना प्रायः सम एव । अगस्त्योदयसाधनैतत्प्रकारथ ।
रा
रा
०
यदा खरांशुर्भवनद्वयेन स्वाक्षांशहीनेन समस्तदानीम् । प्रयात्यगस्त्योऽस्तमयं भषद्वात् तेन च्युतेनोदयमेति तुल्यः ॥ अयं प्रकारश्च ब्रह्मगुप्तलिखित प्रकारसमः ।
अथैनं सांवत्सराः समवलोक्य वासनादित्रुटि पूरयन्त्विति तान् सप्रश्रयं प्रार्थयते ।
Aho! Shrutgyanam
सुधाकर द्विवेदी ।

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 284