Book Title: Kalikacharya Kathasangraha
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Kunvarji Hirji Naliya
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[२८] श्रीसोमसुन्दरसूरिविरचिता-उपदेशमालान्तर्गता
कालिकाचार्यकथा । [ रचनासंवत् १४५७-१४९३ ]
तुरमिणी नगरीई दत्त ब्राझणिइं मुहंतई राज्य आपणह वसिं करी आगिल जितशत्रु राजा काढी आपणपई राज्य अधिष्ठिउं । धर्मनी बुद्धि धणा याग यज्या । एक वार दत्तना माउला श्रीकालिकाचार्य गुरु भाणेज राजा भणी तीगई नगरि आविया । मांमु भणी दत्त गुरु कन्हई गयु । यागर्नु फल पूछिवा लागु । गुरे कहिउं-जीवदया लगे धर्म हुई। दत्त कहई-यागर्नु फल कहु । गुरे कहिउँ-हिंसा दुर्गतिनुं हेतु हुइ । पेलं कहइ-आवडलं का कहु, यागनूं फल कहु । गुरे मरण आगमीनई कहिउ-यागर्ने फल दुर्गति कहीइं। दत्त कहई-हूउं नरगि जाएसि। गुरे कहिलं-कुण संदेह ! । सातमई दिहाडई कुंभीमांहिं पचौतओ नरगि जाएसि । किसिङ महिनाण ! । सातमहं दिहाडई ताहरई मुखि विष्टा पडिस्यि-ए महिनाण । दत्ति कहिउँ-[तउं] मरी किहां जाएसि ।। गुरे कहिउँ-देवलोकि बाइसु | तउ दत्तई रीसाविई गुरु पापती जण मुक्या । चीतवइ छई-सातमई दिहाडई गुरु ज मरस्य । इसिउँ चीतवी घरमांहिं पइंसी रहिमओ । राजाई मार्ग चोखलाविया । तिहां पुष्प प्रकर कराविया । एकई मालीइं गाढई काजि ऊपनइ विष्ठा [मार्गमाहि करी ऊपरि फूलनूं डालं लांषिउं । ते दत्त आठमा दिहाडानी भ्रांति सातमई ज दिनि गुरु मारिवा नीसरिउ । घोडानु पग विष्टा ऊपरि पडिओ । विष्टा उछली तेहनई मुहुडइं पड़ी । बीहनु, पाछओ वलिओ । सामंत मंडलीके तेह उपरि विरक्त ईते बांधि कुंभीमाहि पचीतु नरकिं गिओ। सामंते वली आगिल जितशत्रु राजा थापिउ । तीणई श्रीकालिकाचार्य पूज्या । चारित्र आराधी देवलोकि पुहता । जिम कालिकाचार्ये साचउं बोलिडं तिम भनेरई के धर्म साचउंज कहिवें ॥
इति कालिकाचार्यकथा संपूर्णा ॥
"Aho Shrutgyanam"

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