Book Title: Kalikacharya Kathasangraha
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Kunvarji Hirji Naliya

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Page 406
________________ श्रीगुणरत्नसरिविरचिता तुम्ह कुकि इम न कीजइ, सरसति सती य न कीजइ / सीतह कारणि रावण, गयु निरवाणि ए निरगुण // 14 // राजन कहिउँ अकीजइ, सीपी माणि कणई नवि डीजइ मुरष राज म चूकि, सरसति सतीय तूं मुंकि / जिम जिम श्रीय संघ चारह, कोपिई तिम राय घणं गरई // 15 // दाहि म घणी य न कीजइ, अम्ह सीष असी य न दीजइ / राय रोसइ मुभट तेडावइ, गेल इथ धरीय नइ वारइ // 16 // श्रीसंघ गुरु भणी आवइ, सयल समं(संबं)ध जणावइ / सरसति न मेल्डइ ए नरवर, कहु किम कीजइ गणधर // 17 // सरि भणइ मुणु संघ वात, सही हिवें फरीए पात / नीगमं एह तणं राज, सीझतु मन तणं काज // 18 // इम कहीं अवधूत वेसि, गुरु पहुवा शाक तणइ देसि / र(री)जधी राय निवाणं, दल लेई करइ पीया // 19|| आवी स(सो)रठहं देसि, ढांकह रहिया कटक चुमासि / सेनापति गुरुपासि आवी, निरधनपशू य जणावी // 20 // शासनादेवि प्रसादिइं, गणधरमनह आणंदिई / / ईटवा कनकमइ कीधु, वहिची सवे ते य लोधु // 21 // सेनापति कटक चलावइ, ततक्षिणि ऊजेणि आवइ / गर्दभिल मंत्र तव साधइ, गर्दभी विद्या आराधइ / / 22 / / गुरु वेगिडं मुभट तेडावी. गर्दभिल कर जणावी / . अबदचो(वे)धी गुरे लीधा, तेय सवे आगलि कीधा // 23 // तेह मुखि माथु भरीउ, जीपी गर्दभिक धरीउ / एह नृप राज उदाली, सरसति सती य मेल्हावी // 24 // रंगिई गुरु पासि आवी, सयल वृत्तांत. जणावीउ / गुणाकरसूर पाए लागी, गणधर आलोयण मागी // 25 // कालिक छांडी सवे माया, कीधी य निरमल काया / गणधर जगि जयवंता, तप करी मुगति पहुता // 26 // पीपलगच्छि गुर सोहइ, भवीयण जण मन मोहइ / श्रीगुणरयणसूरिंद, हईयडइ परीय आणंद // 27 // कीघउ एह चरित्र रसाल, सुशु बहू बालगोपाल / तेह घरि सयल समृद्धि, पामइ अविहद रखिदि // 28 // इति श्रीकालिकरिनी कथा भास समाप्तः / / संवत् 1740 वर्षे द्वितीय श्रावण शुदि 12 खी दिने लषितः / / माइ वाहालबाई ल(लि)खादी (पित श्रीराजनगरे मध्ये लषितः / श्रीकल्याणमस्तु॥ "Aho Shrutgyanam"

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