Book Title: Kalashamrut Part 2
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૩૮૧
શ્રી નાટક સમયસારના પદો
જીવ અને પુદ્ગલનું લક્ષણ (દોહરા) चेतनवंत अनंत गुन, सहित सु आतमराम।। यातें अनमिल और सब, पुदगलके परिनाम।।४।।
(लश-3-34)
આત્મજ્ઞાનનું પરિણામ (કવિત) जब चेतन सँभारि निज पौरुष,
निरखै निज दृगसौं निज मर्म। तब सुखरूप विमल अविनासिक,
___जानै जगत सिरोमनि धर्म।। अनुभौ करै सुद्ध चेतनकौ,
रमै स्वभाव वमै सब कर्म। इहि विधि सधै मुकतिको मारग, अरु समीप आवै सिव सर्म।। ५।।
(सश-४-36)
४७-येतननी मिन्नत(Easu) वरनादिक रागादि यह, रूप हमारौ नांहि। एक ब्रह्म नहि दूसरौ, दीसै अनुभव मांहि।।६।।
( श-५-३७)
દેહ અને જીવની ભિન્નતા પર બીજું દૃષ્ટાંત (દોહરા) खांडो कहिये कनककौ, कनक-म्यान-संयोग। न्यारौ निरखत म्यानसौं , लोह कहैं सब लोग।।७।।
(इलश-6-3८)
જીવ અને પુદ્ગલની ભિન્નતા (દોહરા) वरनादिक पुदगल-दसा, धरै जीव बहु रूप। वस्तु विचारत करमसौं, भिन्न एक चिद्रूप।।८।।
(सश-७-७८)
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