Book Title: Kalashamrut Part 2
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 394
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ૩૮૨ કલશાકૃત ભાગ-૨ દેહ અને જીવની ભિન્નતા પર બીજું દૃષ્ટાંત (દોહરા) ज्यौं घट कहिये घीवकौ, घटकौ रूप न घीव। त्यौं वरनादिक नामसौं, जड़ता, लहै न जीव।।९।। (सश-८-४०) આત્માનું પ્રત્યક્ષ સ્વરૂપ (દોહરા) निराबाध चेतन अलख, जाने सहज स्वकीव। अचल अनादि अनंत नित, प्रगट जगतमैं जीव।।१०।। ___ (१४-८-४१) અનુભવ વિધાન (સવૈયા એકત્રીસા) रूप-रसवंत मूरतीक एक पुदगल, रूप बिनु औरु यौं अजीव दर्व दुधा है। चारि हैं अमूरतीक जीव भी अमूरतीक, ___ याहितें अमूरतीक-वस्तु-ध्यान मुधा है।। औरसौं न कबहूं प्रगट आप आपुहीसौं, __ ऐसौ थिर चेतन-सुभाउ सुद्ध सुधा है। चेतनको अनुभौ अराधैं जग तेई जीव; जिन्हकौं अखंड रस चाखिवेकी छुधा है।।११।। (saa-१०-४२) મૂઢ સ્વભાવ વર્ણન (સવૈયા તેવીસા). चेतन जीव अजीव अचेतन, लच्छन-भेद उभै पद न्यारे। सम्यक्दृष्टि-उदोत विचच्छन, भिन्न लखै लखिमैं निरधारे।। जे जगमांहि अनादि अखंडित, मोह महामदके मतवारे। ते जड़ चेतन एक कहैं , तिन्हकी फिरि टेक टरै नहि टारे।।१२।। (सश-११-४3) Please inform us of any errors on rajesh.shah@totalise.co.uk

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