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કલશાકૃત ભાગ-૨ દેહ અને જીવની ભિન્નતા પર બીજું દૃષ્ટાંત (દોહરા) ज्यौं घट कहिये घीवकौ, घटकौ रूप न घीव। त्यौं वरनादिक नामसौं, जड़ता, लहै न जीव।।९।।
(सश-८-४०)
આત્માનું પ્રત્યક્ષ સ્વરૂપ (દોહરા) निराबाध चेतन अलख, जाने सहज स्वकीव। अचल अनादि अनंत नित, प्रगट जगतमैं जीव।।१०।।
___ (१४-८-४१)
અનુભવ વિધાન (સવૈયા એકત્રીસા) रूप-रसवंत मूरतीक एक पुदगल,
रूप बिनु औरु यौं अजीव दर्व दुधा है। चारि हैं अमूरतीक जीव भी अमूरतीक,
___ याहितें अमूरतीक-वस्तु-ध्यान मुधा है।। औरसौं न कबहूं प्रगट आप आपुहीसौं,
__ ऐसौ थिर चेतन-सुभाउ सुद्ध सुधा है। चेतनको अनुभौ अराधैं जग तेई जीव; जिन्हकौं अखंड रस चाखिवेकी छुधा है।।११।।
(saa-१०-४२)
મૂઢ સ્વભાવ વર્ણન (સવૈયા તેવીસા). चेतन जीव अजीव अचेतन,
लच्छन-भेद उभै पद न्यारे। सम्यक्दृष्टि-उदोत विचच्छन,
भिन्न लखै लखिमैं निरधारे।। जे जगमांहि अनादि अखंडित,
मोह महामदके मतवारे। ते जड़ चेतन एक कहैं , तिन्हकी फिरि टेक टरै नहि टारे।।१२।।
(सश-११-४3)
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