Book Title: Kalashamrut Part 2
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 399
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates उ८७ શ્રી નાટક સમયસારના પદો कर्मपिंडकौ विलास वन रस गंध फास, करता दुहूँको पुदगल पखानिये।। तातै वरनादि गुन ग्यानावरनादि कर्म, नाना परकार पुदगलरूप जानिये। समल विमल परिनाम जे जे चेतनके, ते ते सब अलख पुरुष यौं बखानिये।। १२ ।। (सश-११-५६) ભેદજ્ઞાનનું રહસ્ય મિથ્યાદેષ્ટિ નથી જાણતો એના ઉપર દૃષ્ટાંત (સવૈયા એકત્રીસા) जैसैं गजराज नाज घासके गरास करि, भच्छत सुभाय नहि भिन्न रस लीयौ है। जैसैं मतवारी नहि जानै सिखरनि स्वाद, ___ जुंगमें मगन कहै गऊ दूध पीयौ है।। तैसैं मिथ्यादृष्टि जीव ग्यानरूपी है सदीव, पग्यौ पाप पुन्नसौं सहज सुन्न हीयौ है। चेतन अचेतन दुहूँको मिश्र पिंड लखि, एकमेक मानै न विवेक कछु कीयौ है।।१३।। (११-१२-५७) જીવને કર્મનો કર્તા માનવો તે મિથ્યાત્વ છે એના ઉપર દૃષ્ટાંત (સવૈયા એકત્રીસા) जैसैं महा धूपकी तपतिमैं तिसायौ मृग; भरमसौं मिथ्याजल पीवनकौं धायौ है। जैसैं अंधकार मांहि जेवरी निरखि नर, भरमसौं डरपि सरप मानि आयौ है।। अपनैं सुभाव जैसैं सागर सुथिर सदा, पवन-संजोगसौं उछरि अकुलायौ है। तैसैं जीव जड़सौ अव्यापक सहज रूप, भरमसौ करमकौ करता कहायौ है।।१४।। (लश-१३-५८) Please inform us of any errors on rajesh.shah@totalise.co.uk

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