Book Title: Kalashamrut Part 2
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 398
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ૩૮૬ કલશાકૃત ભાગ-૨ एक करम करतव्यता, करै न करता दोइ। दुधा दरव सत्ता सधी, एक भाव क्यौं होइ।।९।। (सश-८-43) કર્તા, કર્મ અને ક્રિયા પર વિચાર (સવૈયા એકત્રીસા) एक परिनामके न करता दरव दोइ, दोइ परिनाम एक दर्व न धरतु है।। एक करतूति दोइ दर्व कबहूँ न करै, दोइ करतूति एक दर्व न करतु है।। जीव पुदगल एक खेत-अवगाही दोउ, अपनें अपने रूप कोउ न टरतु है। जड परनामनिकौ करता है पुदगल, चिदानंद चेतन सुभाउ आचरतु है।।१०।। (लश--५४) મિથ્યાત્વ અને સમ્યકત્વનું સ્વરૂપ (સવૈયા એકત્રીસા). महा धीठ दुखको वसीठ परदर्वरूप, ___ अंधकूप काहूपै निवार्यो नहि गयौ है। ऐसौ मिथ्याभाव लग्यौ जीवकौं अनादिहीको, याही अहंबुद्धि लिए नानाभांति भयौ है।। काहू समै काहूको मिथ्यात अंधकार भेदि, ममता उछेदि सुद्ध भाव परिनयौ है। तिनही विवेक धारि बंधकौ विलास डारि, आतम सकतिसौं जगत जीत लयौ है।।११।। (सश-१०-५५) જેવું કર્મ તેવો કર્તા. (સવૈયા એકત્રીસા) सुद्धभाव चेतन असुद्धभाव चेतन, दुहूंकौ करतार जीव और नहि मानिये। Please inform us of any errors on rajesh.shah@totalise.co.uk

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