Book Title: Kalashamrut Part 2
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ ३८४ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates કલશામૃત ભાગ-૨ ભેદવિજ્ઞાનમાં જીવ કર્મનો કર્તા નથી, નિજસ્વભાવનો કર્તા છે( સવૈયા એકત્રીસા ) प्रथम अग्यानी जीव कहै मैं सदीव एक, दूसरौ न और मैं ही करता करमकौ । अंतर- विवेक आयौ आपा-पर-भेद पायौ, भयौ बोध गयौ मिटि भारत भरमकौ । भासे छहौं दरबके गुन परजाय सब, नासे दुख लख्यौ मुख पूरन परमकौ । करम कौ करतार मान्यौ पुदगल पिंड, आप करतार भयौ आतम धरमकौ ॥२॥ ( ऽलश-१-४६ ) जाही समै जीव देहबुद्धिकौ विकार तजै, वेद सरूप निज भेदत भरमकौं । महा परचंड मति मंडन अखंड रस, अनुभौ अभ्यासि परगासत परमकौं।। ताही समै घटमैं न रहै विपरीत भाव, जैसैं तम नासै भानु प्रगटि धरमकौं । ऐसी दसा आवै जब साधक कहावै तब, करता ह्वे कैसे करै पुग्गल करमकौं । । ३ ॥ ( ऽलश-२-४७ ) આત્મા કર્મનો કર્તા નથી માત્ર જ્ઞાતા-દેષ્ટા છે. (સવૈયા એકત્રીસા) जगमैं अनादिका अग्यानी कहै मेरौ कर्म करता मैं 3 याकौ किरियाको प्रतिपाखी है। अंतर सुमति भासी जोगसौं भयौ उदासी, ममता मिटाइ परजाइ बुद्धि नाखी है। निरभै सुभाव लीनौ अनुभौके रस भीनौ, कीनौ विवहारदृष्टि निहचैमैं राखी है। भरमकी डोरी तोरी धरमकौ भयौ धोरी, परमसौं प्रीति जोरी करमकौ साखी है ॥४॥ ( ऽलश-3-४८) Please inform us of any errors on rajesh.shah@totalise.co.uk

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401