Book Title: Kalashamrut Part 2
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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કલશાકૃત ભાગ-૨ શ્રી વાઢકસમયસાર
અજીવદ્વા૨ અજીવ અધિકારનું વર્ણન કરવાની પ્રતિજ્ઞા (દોહરા) जीव तत्त्व अधिकार यह, कह्यौ प्रगट समुझाय। अब अधिकार अजीवको, सुनहु चतुर चित लाय।।१।।
મંગલાચરણ ભેદવિજ્ઞાન દ્વારા પ્રાસ પૂર્ણજ્ઞાનને વંદન. (સવૈયા એકત્રીસા)
परम प्रतीति उपजाय गनधरकीसी, ___अंतर अनादिकी विभावता विदारी है। भेदग्यान दृष्टिसौं विवेककी सकति साधि,
चेतन अचेतनकी दसा निरवारी है।। करमकौ नासकरि अनुभौ अभ्यास धरि,
हिएमैं हरखि निज उद्धता सँभारी है। अंतराय नास भयौ सुद्ध परकास थयौ, ग्यानकौ विलास ताकौं वंदना हमारी है।। २।।
(लश-१-33)
શ્રીગુરુની પારમાર્થિક શિક્ષા(સવૈયા એકત્રીસા) भैया जगवासी तू उदासी व्हैक जगतसौं,
एक छ महीना उपदेश मेरौ मानु रे। और संकलप विकलपके विकार तजि ,
बैठिकै एकंत मन एक ठौरु आनु रे। तेरौ घट सर तामैं तूही है कमल ताकौ,
तूही मधुकर व्है सुवास पहिचानु रे। प्रापति न व्हैहै कछु ऐसौ तू विचारतु है, सही व्हैहै प्रापति सरूप यौंही जानु रे।।३।।
(लश-२-३४) નોંધ:- વાચકોને સ્વાધ્યાયની અનુકુળતા માટે અહીં નાટક સમયસારના પદ આપવામાં આવ્યા
છે. કસમાં લખેલા કલશ નંબર સમયસાર આત્મખ્યાતિના મુળ નંબરો છે.
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