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करवाया, जिससे धर्म क्षेत्र सरकारी हस्तक्षेप से बच सका.
* आचार्यश्री की बहुजन हिताय प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर आपके संयम पर्याय की रजतजयन्ती के अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति मान्यवर श्री नीलम संजीव रेड्डी ने मुंबई राजभवन के दरबार हॉल में आपका राजकीय अभिनन्दन किया था. इस अवसर पर उन्होंने आपश्री को राष्ट्रसन्त की पदवी से अलंकृत किया.
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* आपकी सत्प्रेरणा से प्रभु श्री महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी गाँव के सभी वर्ग के लोगों द्वारा मांस-मदिरा का पूर्णतः त्याग व जलमन्दिर में मछली पकड़ने की हमेशा-हमेशा के लिए पाबंदी एवं सरोवर की पवित्रता बनाए रखने का शुभ संकल्प लिया गया. * मुंबई गोडीजी, वालकेश्वर, दिल्ली, अजीमगंज, जियागंज, आदि अनेक संघों में देवद्रव्य की पूर्णतः शुद्धि एवं शास्त्रीय परम्परा का पुनःस्थापन किया गया.
* आचार्यश्री की दक्षिण भारत की यात्रा ने तो पूज्यश्री को राष्ट्रसंत का बिरूद और भी सार्थक कर दिया. दक्षिण की इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान आपने लोक-कल्याण, धर्म- जागरण और स्थानीय जनता की आध्यात्मिक चेतना के विकास व पोषण के लिये अभूतपूर्व कार्य किए. आपके मधुर व्यवहार से अनेक जैन संघों में अनुशासनप्रियता पुष्ट हुई. आपके सौजन्यशील व शालीन उपदेशों से वर्षों से चले आ रहे अनेक विवाद सरलता से हल हो गए. संघ एक जुट हुए. बरसों बाद दक्षिण भारत के जैन संघों में धर्मजिज्ञासु जनता को सफल कुशल नेतृत्व का अनुभव हुआ, दक्षिण भारत में ज्ञान की विलुप्त धारा एक बार फिर तेज गति से बहने लगी.
उत्तर भारत विहार के दौरान आपश्री ने राजस्थान, दिल्ली, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल के अनेक गांवों एवं नगरों में धर्म प्रभावना की आचार्यश्री की निश्रा में सन् १९९५ में हरिद्वार तीर्थ में सभी सम्प्रदायों के संत-संन्यासियों के सहयोग से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ के प्रथम जैन मन्दिर की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई. हरिद्वार के सन्त समुदाय ने आपका शानदार अभिनन्दन किया.
• कंपिलपुर तीर्थभूमि के जीर्णोद्धार सम्बंधी मार्गदर्शन किया...
वाराणसी में श्री पार्श्वप्रभु जन्मकल्याणक भूमि में विहार कर बनारस हिंदू यूनिवर्सीटी में प्रवचन दिया.
* बीस तीर्थकरों की मोक्षकल्याणक भूमि समेतशिखर तीर्थ के विकास और रक्षा के लिए सफल मार्गदर्शन किया.
* सम्मेतशिखर, शौरीपुर आदि तीर्थभूमियों के जिनालयों का जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठाएं करवाई.
* कलकत्ता महानगरी में अनेकविध शासन प्रभावना पूर्वक ऐतिहासिक चातुर्मास, पार्श्व फाउन्डेशन के तहत साधर्मिक भक्ति हेतु लाखों का फंड एकत्र करवाया,
* आपश्री की निश्रा में सन् १९९६ में पुनः श्री सम्मेतशिखर महातीर्थ में श्री भोमियाजी धर्मशाला में जिन बिंबों की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा, श्वेताम्बर कोठी में प्रतिष्ठा महोत्सव, कुंडलपुर स्थित जिनमंदिरजी का जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठा की. राजगृही में पांचों पहाड़ों की तीर्थ यात्रा के दौरान बौद्धधर्म के संतों व नगरजनों की ओर से पूज्य गुरुवर का अपूर्व नागरिक अभिनन्दन हुआ. गुरुदेवश्री के पाटलिपुत्र (पटना) पहुँचने पर बिहार पत्रकार परिषद ने अभिनन्दन समारोह किया.
* सैकड़ों वर्षों के बाद नेपाल में पूज्यश्री ने अपने शिष्य समुदाय सहित प्रथम बार विचरण किया. विहार करके किसी जैनाचार्य का यहाँ प्रथम आगमन था. वीरगंज (नेपाल) में श्री महावीर जन्मकल्याणक पर्व जैन धर्म के चारों संप्रदायों ने अन्य धर्मियों के साथ मनाया. राजधानी काठमाण्डु में श्री महावीरस्वामी जिनमंदिर की भव्य प्रतिष्ठा आपश्री की निश्रा में संपन्न हुई. नेपाल नरेश श्री महाराजा वीरेंद्रवीर विक्रमशाह देव एवं महाराणी ऐश्वर्यादेवी का पूज्यश्री के दर्शन के लिये आना वहाँ के इतिहास के लिए अनुपम घटना कही जा सकती है. जनकपुरी नेपाल में मल्लिनाथ एवं नमिनाथ भगवान के चार-चार कल्याणकों की भूमि पर मंदिर न होने के कारण कल्याणक भूमि में जिनमंदिर युक्त तीर्थ का रूप देने हेतु विशाल आयोजन की प्रेरणा की. अपनी जन्मभूमि अजीमगंज (प. बंगाल) में आपश्री की निश्रा में चार जिनमंदिरों की पुनः प्रतिष्ठा संपन्न हुई..
* सन् २००३ में आपश्री की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में बोरीज तीर्थ का पुनरुद्धार हुआ और प्राचीन देरासर के स्थान पर १०८ फीट ऊँचे उत्तुंग शिखर वाले मंदिर में १६ टन वजन वाली पंचधातु में निर्मित भगवान श्री महावीर प्रभु की प्रतिमा की अंजनशलाका व प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई. यह तीर्थ विश्व मैत्री धाम के रूप में विकसित हुआ है.
ऐसे परम उपकारी, मृदुभाषी, सदैव परमानंद में तल्लीन, शांति प्रसारक, प्रखर प्रवचनकार, जैन समाज के अग्रणी संतप्रवर आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की दीक्षा की स्वर्णजयंती मनाते हुए मुंबई नगर पावन हो रहा है. यह हम सभी का परम सौभाग्य है.
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