Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
मानतुङ्गमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, वि. १७६०, आदि ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे.
९३५९. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. स्थल. द्राफापुर, ले. ऋ भूधर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि.
ढाल- २९ (२६.५x१२, २०४६३-६७). चन्द्रलेखा रास मु. मतिकुशल, मागु ९३६०. चन्दराजा चरित्र, संपूर्ण वि. १८९०
पद्य वि. १७२८ आदि: सरसति भगवति नमी करी अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. मध्यम प्र. १३७, जैदेना, ले. स्थल. जेसलमेरु ले ॠ अखैचन्द, प्र. वि. ढाल - ४ उल्लास, प्र.ले. श्लो. (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५x१२.५ १३४३६-४३). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना .. ९३६१. ठाणाद्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९०० श्रेष्ठ, पृ. २७१, जैदेना., ले. स्थल. नवानगर, ले. ऋ. अजरामल, प्र. वि. मूल - १० स्थान, ग्रं. ३७५०; टबार्थ-ग्रं. १०५००. इस प्रत में टबार्थ का कर्ता का नाम नही मिलता., (२६×१२.५, ५६×३२-३५).
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स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता.
स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज, मागु., गद्य, आदि: (१) श्रीमद्वीरजिनं नत्वा (२) श्रीसुधर्मास्वामी; अंतिः अध्ययनं सम्पूर्ण.
९३६२." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५३+१(१४०) - १५८, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८.५x१२, ६-१५X३१-३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः
कल्पसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि नमस्कर हो अरिहन्तने अंति:
;
कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंति:
९३६५. प्रज्ञापनसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. २८२, जैदेना., ले. ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी), प्र.ले.पु.
विस्तृत, प्र. वि. ग्रं. १६००० (२८.५४१३, १५०५२-५४%
प्रज्ञापनासूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि जयति नमदमरमुकुट; अंतिः जिनवचनसद्बोधम्.
९३६६. दर्शनि जिनमनोनयनाह्लादनोपनिषत, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-२५(१ से २३,७०,८१ ) =७१, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (३०x११.५, १३x४९-५५). दर्शनिजनमनोनयनाह्लादनोपनिषद् निगम सं., गद्य, आदि:-: अंति:
९३६७. चन्दराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदेना., ले. स्थल. रीगणोद, ले. ऋ. जेचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. डाल- ४ उल्लास, (२८x१३, १३४३०-३५).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना.. ९३६८.” कर्मप्रकृति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६३ - २ (५०,१४२ ) = १६१, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीचव अंत के पत्र नहीं हैं., (२९४१३. १५४५४-५६).
कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः
कर्मप्रकृति- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं गद्य आदि प्रणम्य कर्मद्रुम अंतिः
"
९३६९. तेजसार रास, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १८९, जैदेना., ले. स्थल. क्लोदी, ले. ऋ. लक्ष्मीचन्दजी (गुरु ऋ. रुपचन्दजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १०९, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा ; (१६) भणजो गुणजो वाचजो, ( २६.५x१४, १४x२९-३२).
तेजसारकुमार रास, मु. रामचन्द, मागु, पद्य वि. १८०८ आदि स्वस्ति श्रीचन्दगुरु अंतिः सिद्धि वञ्छित वरे ९३७०." कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. २०० - १(१ ) + १ ( २३ ) = २००, जैदेना., ले. स्थल धनारीनगरे, ले.- भूरालाल दवे,
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