________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatith.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति /प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, से इत्यादि तेरा. जैन श्वेतांबर तेरापंथी विभक्ति सूचक
दि. जैन दिगंबर प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, देना. देवनागरी (लिपि) अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक
पठ. पठनार्थ (प्रतिलेखन पुष्पिका) प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता प+ग पद्य व गद्य (कृति प्रकार) सूचक - कर्ता द्वारा लिखित प्रत, कर्ता के शिष्य द्वारा पं. पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) लिखित, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समवर्ती
वर्ष के पूर्व में हो तो संवत् से उतने वर्ष पूर्व का सूचक. काल में लिखित, संशोधित पाठ, शुद्धप्रायः पाठ, टिप्पण
यथा- विपू. ७वी. = विक्रम पूर्व सातवीं सदी. युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के पू.वि. पूर्णता विशेष चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद
पृष्ठ (प्रत माहिती स्तर पर व पेटा कृति स्तर पर) चिह्न, संधिसूचक चिह्न, वचन विभक्ति चिह्न, क्रियापद पे. पेटांक, पेटाकृति अनुक्रम प्रत माहिती स्तर में प्रतगत सूचक चिह्न
कुल पेटा कृति, कृति माहिती स्तर में पेटा कृति क्रमांक कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पे.नाम पेटाकृति नाम पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व पे.वि. पेटांक विशेष, पेटाकृति विशेष तीनों की लघुवृत्ति.
प्र.वि. प्रत विशेष प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की प्र.ले.श्लो. प्रत के अंत में मिलने वाले प्रतिलेखन श्लोक अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से उपयोगिता में कमी
(जलात् रक्षेत्... इत्यादि) सूचक. इस हेतु दशा विशेष में निम्न संकेत हो सकते प्र.ले.पु. प्रतिलेखन पुष्पिका
प्रा. प्राकृत (भाषा) मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित). टीकादि का बौ. बौद्ध अंश नष्ट है. मूल व टीका का अंश नष्ट है. टिप्पणक मा.गु. मारुगुर्जर (भाषा) का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं. अक्षर मिट गये मु. मुनि (विद्वान स्वरूप) हैं. अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की मूपू. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक स्याही फैल गई है. जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं. जीर्णतावश राज. राजस्थानी (भाषा) नष्ट हो गये हैं.
लिखवा. लिखवाने वाला (प्रतिलेखन पुष्पिका) परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में प्रत की अपूर्णता ले. प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका) सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु.
ले.स्थल लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) आदिवाक्य अनुपलब्ध.
वी. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर वीर संवत्, वर्ष संख्या अपभ्रंश (भाषा)
पश्चात होने पर 'वीं सदी' यथा वी ८वीं सदी अंति: अंतिमवाक्य (कृति माहिती)
विक्रम संवत् आ. आचार्य (विद्वान स्वरूप)
वैदिक आदि: आदिवाक्य (कृति माहिती)
शक संवत् उपा. उपाध्याय (विद्वान स्वरूप)
श्रावक (विद्वान स्वरूप) गच्छा. गच्छाधिपति ( विद्वान स्वरूप)
सर्वग्रं. मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र (परिमाण ग. गणि (विद्वान स्वरूप)
प्रत व पेटांक विशेष में) गा. गाथा (परिमाण)
सं. संस्कृत (भाषा) गुज. गुजराती (भाषा)
सा. साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) ग्रं. ग्रंथाग्र (परिमाण)
स्था. जैन श्वेतांबर स्थानकवासी जैदेना. जैन देवनागरी (लिपि)
(-)
अप.
अपनर
१०
For Private And Personal Use Only