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रचना वर्ष, १०.(आदिः) प्रत में उपलब्ध कृति का आदिवाक्य. ११.(अंति:) प्रत में उपलब्ध कृति का अंतिमवाक्य, १२. कृति की प्रतगत पूर्णता. • उपर्युक्त मुद्दों में १ से १२ तक के सभी मुद्दे प्रत में पेटांक होने और इन पेटांकों के स्वतंत्र नाम होने पर दिए गए हैं. • प्रत में पेटांक रहित कृतिवाली प्रतों हेतु ५ से १२ तक के मुद्दे आएँगे. • बिना स्वतंत्र पेटांक नाम वाले संयोगों में उपरोक्त सूची से निम्नलिखित मुद्दे समाविष्ट किए गए हैं - १. पेटा कृति अंक, (३. प्रत में पेटा कृति के पृष्ठ - पृ., ५. कृतिनाम, ६. कर्ता, ७. भाषा, ८. कृति प्रकार, ९. कृति रचना वर्ष, १०.
आदिवाक्य, ११. अंतिमवाक्य. १२. कृति की प्रतगत पूर्णता.) कृति नाम के अंत में star '' हो तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोक संग्रह हेतु हुआ है.
आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) कर के दो दो आदि/अंतिम वाक्य दिए मिलेंगे. यह विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि/अंतिमवाक्यों की वज़ह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथा संभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचूरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषा की पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदिः कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है वह पृष्ठ न हो तो यहाँ पर आदि वाक्य की जगह '' दिया गया है. एवं पृष्ठ होने पर भी यदि पत्र के फट जाने आदि के कारण आदिवाक्य यदि अपठनीय है तो वहाँ पर '' का चिह्न दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है.
कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है यथा उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर लिया गया है.
कृति व विद्वान के अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं.
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ॐ
हस्तप्रत सुचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी
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अहमदाबाद ५. श्री शंभुकुमार कासलीवाल ६. शेठ मोतीशा जैन रिलिजीयस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट ७. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबातीर्थ की प्रस्तुत परियोजना सफलता पूर्वक प्रगति के सोपान पर अग्रेसर है.
अन्यथा यह कार्य इतना सरल नहीं था.
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