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दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : प्रत के आदि/अंत का एक बडा अंश अनुपलब्ध हो. ५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हो. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो..
• जहाँ प्रत व प्रतगत कृतियाँ दोनों की पूर्णता एक जैसी होगी, वहाँ मात्र प्रत स्तर पर ही पूर्णता का उल्लेख मिलेगा. परंतु प्रतगत किसी भी कृति की पूर्णता यदि प्रत से भिन्न होगी, वहाँ प्रत्येक कृति के साथ भी खुद की पूर्णता का उल्लेख मिलेगा.
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• कृति स्तर पर यह मात्र संपूर्ण, पूर्ण व अपूर्ण इन तीन प्रकारों में से कोई एक ही मिलेगा.
५. प्रतिलेखन संवत् : प्रत में विक्रम, शक आदि संवत् उपलब्ध हो तो वही वास्तविक रूप से दिया गया है, अन्यथा लेखन शैली, अक्षरों
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की लाक्षणिकता आदि के आधार पर विक्रम संवत् के अनुमानित शतक का उल्लेख किया गया है.
६. प्रत दशा प्रकार : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण. दशा सम्बन्धी विशेष माहिती 'प्र. दशा' के अंतर्गत दी गई है.
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७. पृष्ठ माहिती (पृ.) : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढ़ते पृष्ठ व उनका योग एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ इतनी माहिती यहाँ आएगी. यथा १ से ५०४ (५, ७, १५, २७) = ४६:५ से ६०-३ (३, १७, १८) = ५३५ से ६०-३ (३, १७, २८) + २ (४,३५) = ५५. यहाँ अंक पर ८. लिपि माहिती प्रत जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया है.
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का चिह्न अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है.
९. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका आदि • प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की है' यह समझ लिया जाना चाहिए.
१०. प्रतिलेखन स्थल माहिति (ले. स्थल) जिस स्थल पर प्रत लेखन कार्य हुआ हो, उसका उल्लेख यहाँ दिया गया है. ११. प्रतिलेखक नाम (ले.) : प्रत की प्रतिलिपी लिखने - लिखवाने वाले विद्वान या लहिया आदि नाम गुरू, गच्छ माहिती के साथ यहाँ दिए गए हैं.
१२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु. ) : प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रतिलेखक सम्बन्धी विस्तृत परंपरा का उल्लेख) की उपलब्धि की मात्रा के अग्रलिखित संकेत यहाँ दिए गए हैं जैसे मध्यम, विस्तृत.
१३. प्रतविशेष (प्र.वि.) : प्रत सम्बन्धी शेष उल्लेखनीय अन्य मुद्दों एवं प्रतगत कृति सम्बन्धी परन्तु सम्भवतः इसी प्रत में उपलब्ध; ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. प्रत क्रमांक के साथ (+) (७) द्वारा सूचित प्रत विशेषताओं का उल्लेख भी यहाँ होगा.
१४. पूर्णता विशेष (पू.वि.) : प्रत संपूर्ण नहीं होने पर कृति का कौन सा अंश उपलब्ध / अनुपलब्ध है, यह स्पष्टता इसमें होगी. १५. दशा विशेष (दशा. वि.) प्रत क्रमांक के साथ द्वारा सूचित प्रत की जीर्ण दशा व उसकी मात्रा आदि सम्बन्धी स्पष्टता यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है.
१६. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले. श्लो.) प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जाने वाले हृदयोद्गार श्लोकादि का संकेत अपने श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संग्रहित ऐसे श्लोकों की सूची में से दिया गया है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी.
१७. लंबाई, चौड़ाई: प्रत की लंबाई-चौड़ाई आधे से. मी. के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है..
१८. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. कृति माहिती स्तर
इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचना ही दी गई है. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती 'द्वितीय कृति विभाग' वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है.
१. पेटांक (पे.), २. पेटा कृति नाम (पे. नाम), ३. पेटा कृति पृष्ठ (पृ.), ४ . ( पे. वि . ) पेटा कृति विशेष व पेटा कृति का प्रत में उपलब्ध परिमाण, ५. कृति नाम, ६. कर्ता का स्वरूप, नाम, ७ कृति भाषा, ८. कृति गद्य, पद्य प्रकार, ९. कृति
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