Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान / व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान / व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम / उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी.. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१ ३ जैन श्रावकों की सूची ३.१४ जैन श्राविकाओं की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची . ३.२ विद्वान शिष्य / संतति माहिती ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष, ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) प्रतगत कृति माहिती स्तर. ये सूचनाएँ विस्तार से कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ के पृष्ठ ३३ से ३८ पर मुद्रित हैं. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परिवर्तित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेदParagraph की बायीं ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने, कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने, अशुद्ध होने इत्यादि हेतु विद्वानों को प्रत की इस महत्ता का स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद में कोष्टक के अंदर इस तरह (+), (-), (# ) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यह चिह्न न होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रत शुद्ध नहीं है. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद () का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र. वि. ' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की निम्नोक्त अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के अंत में (# ) का चिह्न लगाया गया है. सूची में इनका उल्लेख 'दशा वि.' के तहत प्राप्त होगा. ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति / कृतियों के प्रत में उपलब्ध नाम के आधार से बनता है. यथा - बारसासूत्र, आवश्यकसूत्र सह नियुक्ि व टीका, कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली, गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह, स्तवन संग्रह, जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका.... इत्यादि प्रत में दिए गए नामों से सम्बन्धित विस्तृत ब्यौरा प्रथम खंड के पृष्ठ ३३-३४ पर देखें. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की पूर्णता, उपयोगिता व स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए इसे निम्नप्रकार से वर्गीकृत की गई है. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत, २. पूर्ण मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण प्रतों को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा ७ For Private And Personal Use Only

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