Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे..१. हरिवंशपुराण , मु. ब्रह्मजिनदास, सं., पद्य, (पृ. १आ-१६०आ), आदिः सिद्धं सम्पूर्णभव्या; अंतिः भव्यसज्जनवत्सला:., पे.वि. सर्ग-३९. पे.२. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १६०आ-१६०आ), आदिः पञ्चाग्नि सहन सुगम; अंतिः नही होनी होइ सो होई., पे.वि. गा.२. ९३४१. पुण्यसार रास, नन्दीसूत्र व गाथा, संपूर्ण, वि. १७६७, मध्यम, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., (२५४११.५, १४४३०-३१). पे.१. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६६६, (पृ. १अ-८आ, संपूर्ण), आदिः नाभिराय नन्दन नमुं; अंतिः नवनिधि होय तस गेह., पे.वि. ढाल-९. पे..२. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, (पृ. ८आ-८आ, प्रतिपूर्ण), आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति:-, पे.वि. गा.१ से ६ तक लिखा है. पे..३. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#. ९३४३.” सालिभद्रधन्ना रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., ले.- मु. सहजशेखर, पठ.- श्रा. साधुभक्ता सारणमल, प्र.वि. संशोधित, (२६४११.५, १५-१६४३९-४०). पे.-१. शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १आ-१९आ), आदिः सासननायक समरियै; ___ अंतिः फल लहिस्यइजी., पे.वि. ढाल-२९. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदिः#; अंतिः#. ९३४४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-१ अपूर्ण तक है. टबार्थ पत्र-५ तक लिखा है., (२५.५४११.५, ६४३६-४२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करी महावीर; अंतिः९३४५. सिन्दुरप्रकरण सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, प्र. ६२, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, गच्छा.- मु. माणिकचन्दजी(लुङ्कागच्छ), ले.- ऋ. जेचन्द (गुरु ऋ. चतुरचन्द, लुङ्कागच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल श्लो.१०२., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, ५-१८४३८-४१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर समुह; अंति: आ मुक्ताफलनी माला. सिन्दूरप्रकर-कथा* , मागु., गद्य, आदिः यतः येषां न विद्या; अंतिः श्रावकनी कथा. ९३४७.” तत्त्वार्थसूत्र-जिनसहस्त्रनाम-पूजाआदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. ७१, पे. २३, जैदेना., ले.स्थल. बालापुर, ले.- ऋ. फुलचन्द, प्र.वि. अशुद्ध पाठ, (२६४११.५, ७-१४४२८-३१). पे-१. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, (पृ. १अ-९अ, संपूर्ण), आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः., पे.वि. अध्याय-१० प्रारंभ व अंतमे मांगलिक गाथायें दी है. पे..२. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पद्य, (पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रसिद्धाष्टसहस्रेद; अंतिः भक्त्या प्रवन्दामहे., पे.वि. श्लो.१६६. पे.३. अभिषेक विधि, श्रा. आशाधर, सं., प+ग, (पृ. १४आ-२२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमन्मन्दिरमस्तके; अंतिः शिवाशाधरपूज्यपादः. पे.-४. अरिहन्त पूजा, सं., प+ग, (पृ. २२आ-२५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रकथित; अंतिः सन्तु शान्तये. पे.५. सिद्धपूजा, सं., पद्य, (पृ. २५आ-२७आ, संपूर्ण), आदिः ॐ उर्ध्वाधोरयुतं; अंतिः सौभ्येति मुक्तिं. पे:६. कलिकुण्ड पूजा, सं., प+ग, (पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण), आदिः (कारं ब्रह्म; अंतिः शिवं भुक्त्वाभ्युदयं. पे:७. सरस्वती पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, सं.,मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण), आदिः सति श्रुतस्कन्धवने; अंतिः For Private And Personal Use Only

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