Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसरु; अंति: दीइं दोलति दीदारु रे, ढाल-३९, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-६ की गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-७ की गाथा-१२ अपूर्ण व ढाल-२८ की गाथा-४ से ढाल-२९ की गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रगत ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती का मंडलिकादि सत्तासमय दिया है.) १००९९९ (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अपोणानगर, प्रले. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, ११४२९). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संति; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १०१००० (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. उसमापुर, प्रले. मु. लब्धिचंद्र (गुरु उपा. भाणचंद्र गणि); गुपि. उपा. भाणचंद्र गणि; पठ. मु. नरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ५४३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: आवतइ कालवली अनंतगुणा छइ. १०१००२ (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३-४९(१ से १६,१८ से २२,२५,२७ से ३८,४०,४२,४४ से ४९,५६ से ६२)=१४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मल्लयुद्धसंवाहन वर्णन सूत्र-६१ अपूर्ण से आदानानादाने लोच विधि वर्णन सूत्र-५७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१००३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-६(१ से ५,२४)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०सूत्र., संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ गाथा-१२ अपूर्ण से अध्ययन-१९ गाथा-२२ अपूर्ण तक व अध्ययन-१९ गाथा-५५ अपूर्ण से अध्ययन-२३ गाथा-३० अपूर्ण तक है.) १०१००४. साधुवंदना व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, १६४३१). १. पे. नाम. साधुवंदना सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अखंड आचार पाले दोष सब दुर; अंति: ताकु वनणा हमारी है, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तु तो मत बोल भाइ झट नीरा; अंति: बालचंद सुणो हो भवीक वृंद, गाथा-१. १०१००५ (#) औपदेशिक सज्झाय,लावणी व नेमराजिमती नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-१२(१ से १०,१२ से १३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१०.५, ९४२३-२६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रामकिसन ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८६८, आदिः (-); अंति: से ए उपदेश सुणाया है, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१२ __ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती नवरसो, पृ. १४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०१००६. (+#) गौतमपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, प्रले. नगराज लेखक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गो०च०, गो०चउप०., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३३-३७). For Private and Personal Use Only

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